Written by: Ekta Mishra
केदारनाथ एक ऐसा स्थान है जहां जीवन की शुरुआत और अंत एक-दूसरे से मिलते हैं। यह सिर्फ एक तीर्थ नहीं, बल्कि एक ऐसा स्थान है जहां भगवान शिव की उपस्थिति महसूस होती है। यहां आने से दुख से भरे मन को शांति मिलती है और मोक्ष का रास्ता खुलता है। शिवपुराण की कोटि रुद्र संहिता में बताया गया है कि अगर कोई व्यक्ति श्रद्धा भाव से केदारनाथ की यात्रा पर निकले और यात्रा के दौरान उसकी मृत्यु हो जाए, तो उसे भी मोक्ष प्राप्त होता है। केदारनाथ की महिमा सिर्फ यहीं तक नहीं है। शिवपुराण के अनुसार, जो भक्त केदारनाथ मंदिर के दर्शन करता है और वहां मौजूद पवित्र कुंड का जल पीता है, वह भी जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। आइए जानते हैं उस परम धाम केदारनाथ से जुड़े कुछ ऐसे रहस्य, जो आत्मा को मुक्ति की ओर ले जाते हैं।
कहां स्थित है केदारनाथ
भगवान शिव को समर्पित केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और साथ ही पंच केदार में भी शामिल है। शिवपुराण के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण पांडवों के पौत्र महाराज जनमेजय ने करवाया था। यहां भगवान शिव की स्वयंभू शिवलिंग (जो स्वयं प्रकट हुई है) स्थापित है। बाद में इस मंदिर का जीर्णोद्धार (पुनर्निर्माण) आदि शंकराचार्य द्वारा कराया गया था।
कौन करता है केदारनाथ में पूजा
केदारनाथ मंदिर में पूजा करने की परंपरा बहुत प्राचीन है। यहां के तीर्थ पुरोहितों (स्थानीय पुजारियों) के पूर्वजों ने भगवान नर-नारायण और दक्ष प्रजापति के समय से पूजा करते आ रहे हैं। उन्हें यहां पूजा करने का अधिकार पांडवों के पौत्र राजा जनमेजय ने दिया था। साथ ही उन्होंने पूरा केदार क्षेत्र भी इन्हें दान में दे दिया था। केदारनाथ के मुख्य पुजारी को ‘रावल’ कहा जाता है। रावल कर्नाटक के वीराशैव समुदाय से आते हैं और माना जाता है कि वे आदि शंकराचार्य के वंशज हैं। हालांकि, रावल खुद मंदिर में पूजा नहीं करते। वे पूजा कराने के लिए अन्य पुजारियों को निर्देश देते हैं, और वही भगवान शिव की पूजा करते हैं।
तीन भाग में बंटा है केदारेश्वर मंदिर
केदारनाथ मंदिर को तीन भागों में बाँटा गया है: गर्भगृह, मध्य भाग और सभा मंडप। गर्भगृह में भगवान शिव का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग के आगे भगवान गणेश और माता पार्वती का श्री यंत्र भी स्थापित है। शिवलिंग को देखने पर ऐसा लगता है जैसे उस पर प्राकृतिक रूप से यज्ञोपवीत (जनेऊ) अंकित हो। इसके पिछले भाग में स्फटिक की बनी एक माला भी दिखाई देती है, जो प्राकृतिक रूप से बनी हुई है। इस मंदिर में हजारों वर्षों से एक दीपक लगातार जल रहा है। जब मंदिर छह महीने के लिए बंद कर दिया जाता है, तब भी यह दीपक अपने आप जलता रहता है। मंदिर के अंदर चार बड़े स्तंभ हैं, जिन्हें चार वेदों का प्रतीक माना जाता है, और भक्तों को इन स्तंभों के पीछे से परिक्रमा करनी चाहिए।
केदारनाथ मंदिर का इतिहास
भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि ने कठोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपने दर्शन दिए। दर्शन मिलने पर नर और नारायण ने भगवान शिव से यह वरदान मांगा कि वे इस स्थान पर हमेशा के लिए ज्योतिर्लिंग रूप में निवास करें। भगवान शिव ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली और तब से वे केदारनाथ में ज्योतिर्लिंग रूप में सदा के लिए विराजमान हो गए।
पंच केदार का रहस्य
पुराणों के अनुसार, महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद पांडव भ्रातृ हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव के पास गए। वे भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे, लेकिन भगवान शिव उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे। पांडव सबसे पहले काशी पहुंचे, लेकिन भगवान शिव वहां से अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद, पांडव हिमालय पहुंचे, लेकिन भगवान शिव वहां से भी गायब हो गए। हालांकि, पांडवों ने हार नहीं मानी और उनकी खोज जारी रखी। जब वे केदारनाथ पहुंचे, तो भगवान शिव ने बैल का रूप धारण कर लिया और बाकी पशुओं में घुस गए। पांडवों को संदेह हुआ और भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर लिया। भीम ने अपने दोनों पैरों को अलग-अलग पहाड़ों पर रख दिया, जिससे बाकी बैल उनके पैरों से निकल गए, लेकिन बैल रूप में भगवान शिव नहीं गए। इसके बाद, भीम ने बैल की पीठ पर झपट्टा मारा और भगवान शिव को पकड़ लिया। भगवान शिव पांडवों की भक्ति से प्रसन्न हो गए और अंतर्ध्यान होते हुए उनका धड़ काठमांडू पहुंच गया, जो आज पशुपति नाथ के नाम से प्रसिद्ध है। भगवान शिव की भुजाएं तुंगनाथ, मुख रुद्रनाथ, नाभि मद्महेश्वर और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई। इस प्रकार, इन चार स्थानों को पंच केदार कहा जाता है।
केदारनाथ को लेकर अन्य मान्यता
केदारनाथ से जुड़ी एक और मान्यता यह है कि जब असुरों ने देवताओं पर आक्रमण किया, तो देवताओं ने भगवान शिव की पूजा और आराधना की। भगवान शिव उनके सामने बेल के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने देवताओं से कहा “कोदारम” यानी “किसे चीरूं, किसे फाड़ूं?” इसके बाद भगवान शिव ने बैल के रूप में असुरों का नाश किया और उनके सींगों और खुरों से असुरों को हराया। इन असुरों को भगवान शिव ने मंदाकिनी नदी में फेंक दिया। इस घटना के कारण केदारनाथ का नाम कोदारम पड़ा।
केदारनाथ के रहस्य
केदारनाथ मंदिर के पास एक कुंड है जिसे रेतस कुंड कहा जाता है। इस कुंड के पास “ॐ नम: शिवाय” मंत्र बोलने पर पानी में बुलबुले उठते हैं। साथ ही, इस कुंड का पानी पीने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इसके अलावा, यह भी कहा जाता है कि जब केदारनाथ मंदिर छह महीने के लिए बंद होता है, तो इन छह महीनों में भी मंदिर के अंदर दीपक जलता रहता है। मंदिर के पास रहने वाले बताते हैं कि मंदिर के कपाट बंद होने के बाद भी अंदर से घंटी बजने की आवाज आती है। पुराणों के अनुसार, इन छह महीनों में देवता गण यहां पूजा करते हैं, यानी मंदिर छह महीने मनुष्यों के लिए खुला रहता है और बाकी छह महीने देवताओं के लिए।
केदारनाथ यात्रा की शुरुआत गौरी कुंड से होती है, जहां का पानी हमेशा गर्म रहता है। यहां स्नान करने के बाद ही केदारनाथ की यात्रा शुरू की जाती है। मान्यता है कि इस कुंड के पास माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या की थी। इसलिए इस कुंड का नाम गौरी कुंड पड़ा।
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