सनातन धर्म में हनुमान जन्मोत्सव का विशेष महत्व है. इस दिन विधि विधान से अंजनी पुत्र हनुमान की पूजा अर्चना करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. हनुमानजी एकमात्र ऐसे देवता माने जाते हैं जो आज भी पृथ्वी पर जीवित हैं और अपने भक्तों की रक्षा करते हैं. हनुमान जयंती भगवान हनुमान के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। विशेष बात यह है कि यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है एक बार चैत्र माह की पूर्णिमा को और दूसरी बार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को। उत्तर भारत और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में हनुमान जयंती चैत्र पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, जो आमतौर पर मार्च या अप्रैल में आती है। वहीं दक्षिण भारत, विशेष रूप से तमिलनाडु और कर्नाटक में, यह पर्व मार्गशीर्ष या कार्तिक महीने में मनाया जाता है। आइए जानते हैं आखिर साल में दो बार हनुमान जन्मोत्सव क्यों मनाया जाता है.
हनुमान जन्मोत्सव का महत्व
हनुमान जन्मोत्सव भगवान हनुमान के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है और यह दिन श्रद्धा, भक्ति और आत्मबल का प्रतीक माना जाता है। भगवान हनुमान को असीम बल, बुद्धि, भक्ति और सेवा का अवतार माना जाता है। उनके जन्म का यह पावन अवसर न केवल धार्मिक दृष्टि से विशेष है, बल्कि यह भक्तों के लिए आत्मिक ऊर्जा और प्रेरणा का स्रोत भी है। हनुमान जन्मोत्सव पर हनुमान जी की विधि पूर्वक पूजा- अर्चना की जाती है और साथ में चोला भी अर्पित किया जाता है। हनुमान जी को शिव जी 11 अवतार माना जाता है। मान्यतानुसार, हनुमान जी की सच्चे मन से उपासना करने से हर मणिकामना पूरी होती है तथा बहुत- प्रेत और शत्रुओं से मुक्ति मिलती है हनुमान जन्मोत्सव के दिन हनुमान चालीसा, बजरंबाण, सुंदरकांड आदि का पाठ करने का विशेष महत्व है. हनुमानजी के ये पाठ करने से जीवन में आने वाली सभी बाधाओं पर विजय प्राप्त करवाते हैं. साथ ही हनुमानजी सभी भक्तों के सभी भयों को दूर करते हैं।
दो बार क्यों हनुमान जयंती
हनुमान जयंती का त्यौहार साल में दो बार मनाए जाने की परंपरा है. दरअसल हनुमान जन्मोत्सव को तो साल में एक बार ही मनाया जाता है लेकिन दूसरी बार हनुमान जयंती को विजय अभिनन्दन महोत्सव के रूप में मनाए जाने की परंपरा है. वाल्मीकि रामयाण के अनुसार, हनुमानजी का जन्म कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि, मेष लग्न और स्वाति नक्षत्र में एक गुफा में हुआ था. इसलिए इस दिन को हनुमानजी को प्राकट्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है. वहीं चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हनुमान जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि को हनुमान जन्मोत्सव तो कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि को विजय अभिनन्दन महोत्सव के रूप में मनाया जाता है.
पहली कथा
एक कथा के अनुसार, जब हनुमानजी छोटे थे तो उनको बहुत तेज भूख लग रही थी. उन्होंने आसमान में सूर्य को देखकर उसको फल समझने लग गए और खाने के लिए दौड़ने लगे. उसी दिन राहु भी सूर्यदेव को अपना ग्रास बनाने के लिए पहुंचा हुआ था लेकिन हनुमानजी को देखकर सूर्यदेव ने उनको दूसरा राहु समझ लिया. तभी देवराज इंद्र ने हनुमानजी को रोकने के प्रयास में प्रहार कर दिया था, जिससे वे मूर्छित हो गए. हनुमानजी को पवनपुत्र भी कहा जता है और देवराज इंद्र की ऐसी हरकत देखकर, पवनदेव क्रोधित हो गए और उन्होंने हवा रोक दी. इससे पूरे संसार में संकट की स्थिति बन गई. जिस दिन हनुमानजी को दूसरा जीवन मिला, उस दिन चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि थी, इसलिए यह दिन हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है.
दूसरी कथा
एक अन्य कथा के अनुसार, हनुमानजी की भक्ति और समर्पण की भावना को देखकर सीताजी ने उनको अमरता का वरदान दिया था. जिस दिन हनुमानजी को यह वरदान प्राप्त था, उस दिन कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि यानी नरक चतुर्दशी तिथि का दिन था. इसलिए इस दिन को हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन सिंदूर और चोला अर्पित करने से हनुमानजी प्रसन्न होते हैं और कुंडली में मंगल ग्रह शुभ प्रभाव डालते हैं.