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दिव्य सुधा > व्रत और त्योहार > सीता नवमी कब है? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा 
व्रत और त्योहार

सीता नवमी कब है? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा 

दिव्यसुधा
Last updated: May 4, 2025 2:41 pm
दिव्यसुधा
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sita navmi
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Written By : Ekta Mishra

पंचांग के अनुसार, हर वर्ष वैशाख माह के शु्क्ल पक्ष की नवमी तिथि को सीता नवमी मनाई जाती है. राम नवमी के एक महीने बाद सीता नवमी मनाई जाती है. इसे जानकी जंयती के नाम से भी जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन माता सीता धरती पर अवतरित हुई थी. माता सीता को जानकी, मैथिली, सिया आदि नामों से भी जाना जाता है. सीता नवमी के दिन सुहगिन महिलाएं पति की लंबी आयु और परिवार में सुख-शांति के लिए भगवान राम और माता सीता की पूजा करती हैं. कहते हैं इस दिन विधिपूर्वक व्रत का पालन करने से अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है.

पंचांग के अनुसार, वैशाख माह शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि की शुरुआत 5 मई को सुबह 7:35 मिनट पर होगी. वहीं तिथि का समापन अगले दिन 6 मई को सुबह 8:38 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार, इस साल सीता नवमी का व्रत 5 अप्रैल को रखा जाएगा. सीता नवमी के दिन पूजा करने का शुभ मुहूर्त सुबह 10:58 मिनट से लेकर दोपहर 1:38 मिनट तक रहेगा. ऐसे में भक्तों को भगवान राम और माता सीता की पूजा के लिए कुल 2 घंटे 40 मिनट का समय मिलेगा.

पूजा विधि
सीता नवमी के दिन पूजा करने के लिए सीता प्रातः काल उठकर स्नान करें.पूजा-घर के साथ-साथ घर की भी साफ-सफाई करें. उसके बाद एक चौकी पर पीले या लाल रंग का वस्त्र बिछाएं. इस पर श्री राम और माता सीता की प्रतिमा को स्थापित करें. माता सीता का श्रृंगार करें और उन्हें सुहाग की सामग्री अर्पित करें. फिर घी या तिल के तेल का दीपक जलाकर फूल, अक्षत, रोली और धूप आदि से पूजा करें. मंत्र का जाप करें. लाल और पीले रंग के फूल अर्पित करके भोग लगाएं. भगवान से प्रार्थना करें. पूजा में व्रत कथा का पाठ और आरती करें.

कथा
रामायण के अनुसार, मिथिला की धरती पर कई वर्ष तक पानी की एक बूंद भी नहीं पड़ी थी। इस बात को लेकर राजा जनक बेहद चिंतित थे। उन्होंने इस बात को लेकर ऋषि-मुनियों से विचार-विमर्श किया और समस्या का समाधान करने का अनुरोध किया। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने राजा जनक को खेत में हल चलाने की सलाह दी। ऋषि-मुनियों ने कहा कि यदि राजा जनक यदि आप ऐसा ही करेंगे, तो इंद्र देवता की कृपा अवश्य बरसेगी। राजा जनक ने ऋषि-मुनियों के आदेश का पालन करते हुए वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन खेत में हल चलाया। इस दौरान उनके हल से कोई वस्तु टकराई, यह देख राजा जनक ने सेवादारों से उस जगह की खुदाई करवाई। उस जगह की खुदाई के दौरान उन्हें एक कलश मिला, जिसमें एक कन्या थी। राजा जनक ने उन्हें अपनी पुत्री मानकर उनका पालन-पोषण किया। राजा जनक ने उस कन्या का नाम सीता रखा। राजा जनक की बेटी होने के कारण उन्हें जानकी जी भी कहा जाता है। इसके अलावा माता सीता को मैथिली और भूमिजा के नाम से भी पुकारा जाता है। दरअसल, भूमि से जन्म लेने की वजह से उनका नाम भूमिजा पड़ा। कहते हैं कि सीता जी के प्रकट होते ही मिथिला राज्य में जमकर बारिश हुई और वहां का सूखा दूर हो गया। तभी से हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर सीता नवमी मनाई जाती है।

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