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दिव्य सुधा > व्रत और त्योहार > श्री सत्यनारायण व्रत कथा, द्वितीय – अध्याय
व्रत और त्योहार

श्री सत्यनारायण व्रत कथा, द्वितीय – अध्याय

दिव्यसुधा
Last updated: April 28, 2025 7:38 am
दिव्यसुधा
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श्री सत्यनारायण कथा
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सूत जी बोले – हे ऋषियों! अब मैं आपको उस व्यक्ति का इतिहास सुनाता हूँ जिसने पहले इस व्रत को किया था। ध्यान से सुनिए। सुंदर काशीपुरी नगरी में एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण रहता था। वह भूख-प्यास से परेशान होकर इधर-उधर भटकता रहता था। ब्राह्मणों से प्रेम करने वाले भगवान ने एक दिन ब्राह्मण का वेश धारण कर उसके पास जाकर पूछा – “हे विप्र! तुम रोज दुखी होकर धरती पर क्यों भटकते हो?”

दीन ब्राह्मण बोला – “मैं एक निर्धन ब्राह्मण हूँ और भिक्षा के लिए धरती पर घूमता हूँ। हे भगवान! यदि आप मेरे दुख दूर करने का कोई उपाय जानते हैं तो कृपया बताइए।” वृद्ध ब्राह्मण ने कहा – “सत्यनारायण भगवान मनोकामनाएं पूरी करने वाले हैं। तुम उनका पूजन करो। इस व्रत को करने से सभी दुखों से मुक्ति मिलती है।”

वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण किए भगवान सत्यनारायण ने उस निर्धन ब्राह्मण को व्रत की पूरी विधि बताई और फिर अदृश्य हो गए। ब्राह्मण ने मन ही मन ठान लिया कि वह इस व्रत को जरूर करेगा। यह सोचकर उसे रातभर नींद नहीं आई। अगले दिन सुबह वह सत्यनारायण व्रत का संकल्प लेकर भिक्षा के लिए निकल पड़ा। उस दिन उसे भिक्षा में खूब धन मिला। फिर उसने अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ मिलकर श्रद्धा पूर्वक सत्यनारायण भगवान का व्रत किया।

भगवान सत्यनारायण का व्रत करने के बाद वह निर्धन ब्राह्मण सारे दुखों से मुक्त हो गया और उसे ढेर सारी संपत्ति प्राप्त हुई। इसके बाद वह ब्राह्मण हर महीने श्रद्धा से यह व्रत करने लगा। तभी से यह विश्वास बना कि जो भी व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से सत्यनारायण व्रत करेगा, वह सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करेगा और उसके जीवन के सारे दुख दूर हो जाएंगे।

सूत जी ने कहा कि इसी तरह नारद जी से भगवान नारायण ने जो श्रीसत्यनारायण व्रत का वर्णन किया, वह मैं तुम्हें सुनाया। फिर ऋषियों ने कहा, “हे मुनिवर! हम सभी जानना चाहते हैं कि इस व्रत को और कौन-कौन लोगों ने किया और उनके साथ क्या हुआ। हमारे मन में इस व्रत के प्रति गहरी श्रद्धा है।”

सूत जी बोले – हे मुनियों! जिस-जिस ने इस व्रत को किया है, वह सब सुनो!

एक बार वही विप्र अपने बंधु-बांधवों के साथ सत्यनारायण व्रत करने की तैयारी कर रहा था, तभी एक लकड़ी बेचने वाला बूढ़ा आदमी आया। वह प्यास से परेशान था और लकड़ियाँ बाहर रखकर ब्राह्मण के घर के अंदर गया। उस बूढ़े लकड़हारे ने विप्र को व्रत करते हुए देखा और नमस्कार कर पूछा, “आप क्या कर रहे हैं? इसे करने से क्या लाभ होगा? कृपया मुझे भी बताइए।”

ब्राह्मण ने उत्तर दिया, “यह सत्यनारायण भगवान का व्रत है, जो सभी मनोकामनाओं को पूरा करता है। इनकी कृपा से ही मेरे घर में धन-धान्य की वृद्धि हुई है।”

लकड़हारे ने विप्र से सत्यनारायण व्रत के बारे में जानकर बहुत खुशी महसूस की। उसने विप्र के चरणामृत को लिया और प्रसाद खाकर अपने घर वापस गया। उसने मन में ठान लिया कि आज जो धन उसे लकड़ी बेचने से मिलेगा, उसी धन से वह श्री सत्यनारायण भगवान का उत्तम व्रत करेगा। इस संकल्प को लेकर लकड़हारा सिर पर लकड़ियाँ रखकर उस नगर की ओर चल पड़ा जहाँ अमीर लोग अधिक रहते थे। वहां उसे अपनी लकड़ियों का मूल्य पहले से चार गुना अधिक मिला।

बूढ़ा लकड़हारा खुशी-खुशी लकड़ी बेचकर मिले धन से केले, शक्कर, घी, दूध, दही और गेहूं का आटा लेकर सत्यनारायण भगवान का व्रत करने के लिए घर वापस गया। उसने अपने परिवार और बंधु-बांधवों को बुलाकर विधिपूर्वक श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन और व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वह लकड़हारा धन, पुत्र और सुख-संपत्ति से युक्त हो गया और अंत में बैकुंठ धाम चला गया।

॥ इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का द्वितीय अध्याय समाप्त ॥

ये भी पढ़ें –

भगवान सत्यनारायण की व्रत कथा, प्रथम – अध्याय

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