शिव पुराण सभी पुराणों में सबसे महत्वपूर्ण और सबसे ज़्यादा पढ़ी जाने वाली पुराणों में से एक है। इसमें भगवान शिव के विभिन्न रूपों, अवतारों, ज्योतिर्लिंगों, भक्तों और उनकी भक्ति का सुंदर और विस्तार से वर्णन किया गया है। इस पुराण में शिव के कल्याणकारी रूप, उनके गहरे रहस्यों, और पूजा-पद्धति की जानकारी दी गई है। शिव पुराण में शिव को पंचदेवों में प्रधान अनादि सिद्ध परमेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है। शिव-महिमा, लीला-कथाओं के अतिरिक्त इसमें पूजा-पद्धति, अनेक ज्ञानप्रद आख्यान और शिक्षाप्रद कथाओं का सुन्दर संयोजन है। इसमें भगवान शिव के भव्यतम व्यक्तित्व का गुणगान किया गया है। शिव- जो स्वयंभू हैं, शाश्वत हैं, सर्वोच्च सत्ता है, विश्व चेतना हैं और ब्रह्माण्डीय अस्तित्व के आधार हैं।
‘शिव पुराण’ का सम्बन्ध शैव मत से है। शिव पुराण में न सिर्फ भगवान शिव की महिमा का बखान किया गया है, बल्कि इसमें शिक्षाप्रद कथाएं, धार्मिक आख्यान, और भक्ति के तरीके भी बताए गए हैं। यह पुराण हमें यह भी सिखाता है कि शिव कितने सरल और दयालु हैं, जो थोड़ी सी भक्ति से भी जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों को मनचाहा फल देते हैं। इसमें भगवान शिव के जीवन चरित्र, जैसे उनका विवाह (पार्वती से), उनके पुत्रों (जैसे कार्तिकेय और गणेश) की उत्पत्ति और उनके सादा जीवन और रहन-सहन का भी वर्णन किया गया है।
शिव पुराण में 24000 श्लोक है तथा इसके क्रमश: 6 खण्ड है
विद्येश्वर संहिता
रुद्र संहिता
कोटिरुद्र संहिता
कैलास संहिता
वायु संहिता
‘शिवपुराण’ हिंदू धर्म एक प्रमुख तथा प्रसिद्ध ग्रंथ है, इसमें भगवान शिव के कल्याणकारी स्वरूप, उनकी महिमा, रहस्य, और भक्ति की विधियों का विस्तृत और गहराई से वर्णन किया गया है। भगवान शिव सिर्फ एक पौराणिक देवता नहीं हैं, बल्कि वे पंचदेवों में प्रमुख, अनादि (जिसका कोई आरंभ नहीं), और सिद्ध परमेश्वर माने गए हैं। वेद और उपनिषद जैसे प्राचीन ग्रंथों ने भी शिव को स्वयंभू, शांत, सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता और संहारक कहा है।एवं निगमागम आदि सभी शास्त्रों में महिमामण्डित महादेव हैं। वेदों ने इस परमतत्त्व को अव्यक्त, अजन्मा, सबका कारण, विश्वपंच का स्रष्टा, पालक एवं संहारक कहकर उनका गुणगान किया है। श्रुतियों ने सदा शिव को स्वयम्भू, शान्त, प्रपंचातीत, परात्पर, परमतत्त्व, ईश्वरों के भी परम महेश्वर कहकर स्तुति की है। ‘शिव’ का अर्थ ही है- ‘ कल्याणस्वरूप’ और ‘कल्याणप्रदाता’’। परमब्रह्म के इस कल्याण रूप की उपासना उटच्च कोटि के सिद्धों, आत्मकल्याणकामी साधकों एवं सर्वसाधारण आस्तिक जनों-सभी के लिये परम मंगलमय, परम कल्याणकारी, सर्वसिद्धिदायक और सर्वश्रेयस्कर है। शास्त्रों में कहा गया है कि देवता, दानव, ऋषि, मुनि, यहाँ तक कि ब्रह्मा और विष्णु भी शिव की उपासना करते हैं। यह दिखाता है कि शिव का स्थान सर्वोच्च है। इस पुराण के अनुसार यह पुराण परम उत्तम शास्त्र है। इसे इस भूतल पर शिवपुराण को भगवान शिव का वाणी स्वरूप माना गया है। इसका पढ़ना, सुनना और मनन करना बहुत पुण्यदायी है। इससे शिव भक्ति पाकर श्रेष्ठतम स्थिति में पहुँचा हुआ मनुष्य शीघ्र ही शिवपद को प्राप्त कर लेता है। इसलिये सम्पूर्ण यत्न करके मनुष्यों ने इस पुराण को पढ़ने की इच्छा की है- अथवा इसके अध्ययन को अभीष्ट साधन माना है। इसी तरह इसका प्रेमपूर्वक श्रवण भी सम्पूर्ण मनोवंछित फलों के देनेवाला है। भगवान शिव के इस पुराण को सुनने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है तथा इस जीवन में बड़े-बड़े उत्कृष्ट भोगों का उपभोग करके अन्त में शिवलोक को प्राप्त कर लेता है। यह शिवपुराण नामक ग्रन्थ चौबीस हजार श्लोकों से युक्त है। सात संहिताओं से युक्त यह दिव्य शिवपुराण परब्रह्म परमात्मा के समान विराजमान है और सबसे उत्कृष्ट गति प्रदान करने वाला है। इसलिए इस पुराण का अध्ययन और श्रवण करना हर शिवभक्त के लिए जरूरी और फायदेमंद माना गया है।
शिवपुराण केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह भगवान शिव की महिमा, रहस्य और भक्ति का अमूल्य खजाना है। यह ग्रंथ हमें बताता है कि सच्ची श्रद्धा और विश्वास से शिव की भक्ति करने वाला व्यक्ति जीवन के हर मोड़ पर सफलता और कल्याण प्राप्त करता है।
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