रविवार का दिन सूर्य देव को समर्पित होता है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य देव को 9 ग्रहों का राजा माना गया है। उनकी पूजा और आराधना करने से कुंडली के दोष दूर हो जाते हैं। यदि कुंडली में सूर्य मजबूत अवस्था में हो, तो व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान और सुख-समृद्धि मिलती है। अब आइए जानते हैं रविवार के व्रत कथा के बारे में।
सूर्यदेव व्रत कथा
रविवार के व्रत की कथा भी बहुत रोचक है। प्राचीन काल में एक वृद्धा महिला रहती थीं, जिनका एक नियम था। वह हर रविवार को घर और आंगन को गोबर से लीपतीं और फिर सूर्य देव को भोग अर्पित करके ही भोजन करतीं। इस व्रत के कारण उनके घर में कई तरह के धन और समृद्धि आई। भगवान श्री हरि की कृपा से उनके घर में कभी भी कोई विघ्न या दुख नहीं आता था, और घर में हमेशा सुख-शांति और आनंद रहता था।
कुछ दिनों बाद, वृद्धा की एक पड़ोसन ने सोचा कि यह महिला हमेशा मेरी गाय का गोबर ले जाती है, इसलिए उसने अपनी गाय को घर के भीतर बांध लिया। अब वृद्धा को गोबर नहीं मिला, जिससे वह रविवार के दिन अपना घर नहीं लीप सकी। न तो उसने भोजन तैयार किया, न भगवान को भोग अर्पित किया और न ही स्वयं कुछ खाया। इस तरह वह बिना भोजन के दिनभर रही और रात में भूखी सो गई।
रात में भगवान ने वृद्धा को स्वप्न में दर्शन दिए और भोजन न बनाने का कारण पूछा। वृद्धा ने बताया कि उसे गोबर नहीं मिला। तब भगवान ने कहा, “माता, हम तुम्हें ऐसी गाय देंगे जिससे सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं। क्योंकि तुम हमेशा रविवार को गाय के गोबर से घर लीपकर मेरा भोग अर्पित करती हो, इससे मैं खुश होकर तुम्हें वरदान देता हूँ। मैं निर्धन को धन, बांझ महिलाओं को संतान और दुखों को दूर करता हूँ, साथ ही अंत समय में मोक्ष भी देता हूँ।” यह कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए। जब वृद्धा की आँखें खुली, तो उसने देखा कि उसके आंगन में एक सुंदर गाय और बछड़ा बंधे हुए हैं। वह बहुत खुश हुई और गाय-बछड़े को बाहर बांधकर उन्हें चारा देने लगी।
जब उसकी पड़ोसन वृद्धा ने घर के बाहर एक अति सुन्दर गौ और बछड़े को देखा तो द्वेष के कारण उसका हृदय जल उठा और उसने देखा कि गाय ने सोने का गोबर किया है तो वह उस गाय का गोबर ले गई और अपनी गाय का गोबर उसकी जगह रख गई. वह नित्यप्रति ऐसा ही करती रही और सीधी-साधी वृद्धा को इसकी खबर नहीं होने दी. तब सर्वव्यापी ईश्वर ने सोचा कि चालाक पड़ोसन के कर्म से वृद्धा ठगी जा रही है तो ईश्वर ने संध्या के समय अपनी माया से बड़े जोर की आंधी चला दी. वृद्धा ने आंधी के भय से अपनी गौ को भीतर बांध लिया. प्रातःकाल जब वृद्धा ने देखा कि गौ ने सोने का गोबर दिया तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही और वह प्रतिदिन गऊ को घर के भीतर ही बांधने लगी.
पड़ोसन ने देखा कि अब वृद्धा के घर में गाय और बछड़ा हैं और वह गाय को घर के अंदर बांध रही है। उसे यह देख ईर्ष्या और जलन होने लगी क्योंकि अब उसे गोबर नहीं मिल पा रहा था। उसने राजा के दरबार में जाकर कहा, “महाराज, मेरे पड़ोस में एक वृद्धा के पास ऐसी गाय है जो सोने का गोबर देती है, और यह गाय आप जैसे राजाओं के ही योग्य है। आप उस सोने का उपयोग करके अपनी प्रजा का पालन करें, क्योंकि वह वृद्धा इतने सोने का क्या करेगी?”
पड़ोसन ने देखा कि वृद्धा अब गाय को घर में बांध रही है और उसका सोने का गोबर उठाने का तरीका अब काम नहीं कर रहा। वह ईर्ष्या और जलन से भरी हुई थी। उसने सोचा कि इस पर कोई उपाय करना चाहिए। फिर वह राजा की सभा में जाकर कहा, “महाराज, मेरे पड़ोस में एक वृद्धा के पास ऐसी गाय है जो सोने का गोबर देती है। यह गाय आप जैसे राजाओं के योग्य है। आप उस सोने से अपनी प्रजा का पालन करें, क्योंकि वह वृद्धा इतने सोने का क्या करेगी?”
राजा यह सुनकर घबरा गया और भगवान ने उसे रात्रि में स्वप्न में दर्शन दिए। भगवान ने कहा, “हे राजा, वृद्धा को गाय लौटाना ही तेरा भला है। उसने रविवार के व्रत से मुझे प्रसन्न किया था, इसलिए मैंने उसे गाय दी थी।” प्रातः होते ही राजा ने वृद्धा को बुलाया और बहुत सारा धन और सम्मान के साथ गाय और बछड़ा उसे लौटा दिया। उसकी पड़ोसिन को बुलाकर उचित दंड दिया। इसके बाद राजा के महल से गंदगी दूर हो गई। उसी दिन से राजा ने आदेश दिया कि राज्य के लोग और नगरवासी अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति के लिए रविवार का व्रत करें। व्रत करने से नगर के लोग सुखी जीवन जीने लगे, कोई भी बीमारी या प्राकृतिक आपदा नगर में नहीं आई। पूरी प्रजा सुख-शांति से रहने लगी।
रविवार व्रत पूजा विधि
रविवार का व्रत कम से कम 12 सप्ताह तक करना चाहिए, लेकिन यदि संभव हो तो इसे पूरे साल भर किया जा सकता है। व्रत के दिन सूर्योदय के समय स्नान और ध्यान करें, और लाल रंग के कपड़े पहनें। फिर उगते सूर्य को अर्घ्य दें। सूर्य को जल अर्पित करने के बाद, भगवान सूर्य के बीज मंत्र का कम से कम पांच माला जाप करें। इसके बाद, रविवार व्रत की कथा पढ़ें। इस दिन केवल गेहूं की रोटी या गेहूं का दलिया और गुड़ का सेवन करें। जब व्रत का संकल्प पूरा हो जाए, तो कम से कम दो ब्राह्मणों को आदर के साथ भोजन कराएं और अपने सामर्थ्य के अनुसार सूर्य से संबंधित दान और दक्षिणा दें।