प्रायः हम सभी माँ काली के चित्रों को टीवी या कलेंडर में दो रंगों में देखते है एक तो जैसा उनके नाम के ही अनुरूप है गहरा काला रंग, दूसरा रंग है गहरा नीला, तो आइये जानते है क्या है माँ के इन दोनों स्वरूपों का महत्व
देवी काली तथा तारा में समानतायें
देवी काली ही , नील वर्ण धारण करने के कारण तारा नाम से जानी जाती हैं तथा दोनों का घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। जैसे दोनों शिव रूपी शव पर प्रत्यालीढ़ मुद्रा धारण किये हुए आरूढ़ हैं, दोनों का निवास स्थान श्मशान भूमि हैं, दोनों देविओं की जीभ मुँह से बाहर हैं, दोनों रक्त प्रिया हैं, दोनों ही माँ के स्वरूप भयानक तथा डरावने हैं, भूत-प्रेतों से सम्बंधित हैं, दोनों देविओ का वर्ण गहरे रंग का हैं एक गहरे काले वर्ण की हैं तथा दूसरी गहरे नील वर्ण की। दोनों देवियाँ नग्न अवस्था में विचरण करने वाली हैं, कही कही देवी काली कटे हुई हाथों की करधनी धारण करती हैं, नर मुंडो की माला धारण करती हैं तो देवी तारा व्यग्र चर्म धारण करती हैं तथा नर खप्परों की माला धारण करती हैं। दोनों की साधना तंत्रानुसार पंच-मकार विधि से की जाती हैं, सामान्यतः दोनों एक ही हैं इनमें बहुत काम भिन्नताएं दिखते हैं। दोनों देविओ का वर्णन शास्त्र के अनुसार शिव जी के पत्नी के रूप में किया गया हैं तथा दोनों के नाम भी एक जैसे ही हैं जैसे, हर-वल्लभा, हर-प्रिया, हर-पत्नी इत्यादि, ‘हर’ भगवान शिव का एक नाम हैं। परन्तु देवी तारा ने ही, भगवान शिव को बालक रूप में परिवर्तित कर, अपना स्तन दुग्ध पान कराया था। समुद्र मंथन के समय, कालकूट विष का पान करने के परिणाम स्वरूप, भगवान शिव के शरीर में जलन होने लगी तथा वो तड़पने लगे, देवी ने उन के शारीरिक कष्ट को शांत करने हेतु अपने अमृतमय स्तन दुग्ध पान कराया। देवी काली के सामान ही देवी तारा का सम्बन्ध निम्न तत्वों से हैं।
श्मशान वासिनी या वासी :
तामसिक, विध्वंसक प्रवृत्ति से सम्बन्ध रखने वाले देवी देवता, मुख्य रूप से श्मशान भूमि में वास करते हैं। व्यवहारिक रूप से श्मशान वो स्थान हैं, जहाँ शव के दाह का कार्य होता हैं। परन्तु आध्यात्मिक या दार्शनिक दृष्टि से श्मशान का अभिप्राय कुछ और ही हैं, ये वो स्थान हैं, जहाँ पंच या पञ्च महाभूत, चिद-ब्रह्म में विलीन होते हैं। आकाश, पृथ्वी, जल, वायु तथा अग्नि इन महा भूतो से, संसार के समस्त जीवो के देह का निर्माण होता हैं, तथा शरीर या देह इन्हीं पंच महाभूतों का मिश्रण हैं। श्मशान वो स्थान हैं जहाँ, पांचो भूतो के मिश्रण से निर्मित देह, अपने अपने तत्व में मिल जाते हैं। तामसी गुण से सम्बद्ध रखने वाले देवी-देवता, श्मशान भूमि को इसी कारण वश अपना निवास स्थान बनाते हैं। देवी काली, तारा, भैरवी इत्यादि देवियाँ श्मशान भूमि को अपना निवास स्थान मानती हैं, इसका एक और महत्त्वपूर्ण कारण हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से श्मशान विकार रहित ह्रदय या मन का प्रतिनिधित्व करता हैं। मानव देह कई प्रकार के विकारो का स्थान हैं, काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, स्वार्थ इत्यादि, अतः देवी उसी स्थान को अपना निवास स्थान बनाती हैं जहाँ इन विकारो या व्यर्थ के आचरणों का दाह होता हैं। तथा मन या ह्रदय वो स्थान हैं जहाँ इन समस्त विकारो का दाह होता हैं अतः देवी काली अपने उपासको के विकार शून्य ह्रदय पर ही वास करती हैं।
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