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दिव्य सुधा > अन्य > भक्ति की मिसाल शबरी: रामायण की वह स्त्री जिसने प्रेम से प्रभु को पाया
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भक्ति की मिसाल शबरी: रामायण की वह स्त्री जिसने प्रेम से प्रभु को पाया

दिव्यसुधा
Last updated: April 15, 2025 12:10 pm
दिव्यसुधा
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mata shbari, ram aur laxman
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रामायण में शबरी का जिक्र जरूर आता है। शबरी एक आदिवासी लड़की थी जिसे लोग अछूत मानते थे। शबरी का असली नाम श्रमणा था। वह भील समुदाय के शबर जाति से संबंध रखती थी। इसी करण कालांतर में उसका नाम शबरी पड़ा। शबरी के पिता भीलों के मुखिया थे। श्रमणा का विवाह एक भील कुमार से तय हुआ। उसकी विवाह के पूर्व कई सौ पशुओ को बलि के लाया गया। जिसे देख कर श्रमणा बहुत दुखी हुई। वो सोच रही थी ये कैसी परम्परा है न जाने कितने बेजुबान और निर्दोष पशुओं की बलि दी जाएगी। इसलिए शबरी अपने विवाह के एक दिन पूर्व घर से भाग गयी और दंडकारण्य वन में पहुच गयी।

दंडकारण्य वन में मातंग ऋषि तपस्या किया करते थे, श्रमणा उनकी सेवा करना चाहती थी परन्तु भील जाति की होने के कारण उसे अवसर ना मिलने का अंदेशा था। फिर भी शबरी सुबह-सुबह ऋषियों के उठने से पूर्व उनके आश्रम से नदी तक का रास्ता साफ़ कर देती थीं, कांटे चुनकर रास्ते में साफ बालू बिछा देती थी। यह सब वे ऐसे करती थीं कि किसी को इसका पता नहीं चलता था।

एक दिन ऋषि श्रेष्ठ को शबरी दिख गई और उनके सेवा से अति प्रसन्न हो गए और उन्होंने शबरी को – अपने आश्रम में रहने की आज्ञा दे दी। जब मतंग का अंतिम समय आया तो उन्होंने शबरी से कहा कि वे अपने आश्रम में ही भगवान राम की प्रतीक्षा करें, वे उनसे मिलने जरूर आएंगे।

मतंग ऋषि की मृत्यु के बाद शबरी का समय भगवान राम की प्रतीक्षा में बीतने लगा, वह अपना आश्रम एकदम साफ़ रखती थीं। रोज भगवान राम के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती थी। बेर में कीड़े न हों और वह खट्टा न हो इसके लिए वह एक-एक बेर चखकर तोड़ती थी। उसे ऐसा करते-करते कई वर्ष बीत गए।

एक दिन शबरी को पता चला कि दो सुंदर युवक उन्हें ढूंढ रहे हैं, वे समझ गई कि उनके प्रभु राम आ गए हैं. उस समय तक वह वृद्ध हो चली थीं, लेकिन राम के आने की खबर सुनते ही उसमें ताकत आ गई और वह भागती हुई अपने राम के पास पहुंची और उन्हें उनके चरणों में गिर गयी। उसके बाद शबरी राम और लक्ष्मण को आश्रम लेकर आई और उनके पांव धोकर बैठाया।

अपने तोड़े हुए मीठे बेर राम को दिए राम ने बड़े प्रेम से वे बेर खाए और लक्ष्मण को भी खाने को कहा। लक्ष्मण को जूठे बेर खाने में संकोच हो रहा था, राम का मन रखने के लिए उन्होंने बेर उठा तो लिए लेकिन खाए नहीं। इसका परिणाम यह हुआ कि राम-रावण युद्ध में जब शक्ति बाण का प्रयोग किया गया तो वे मूर्छित हो गए थे, तब इन्हीं बेर की बनी हुई संजीवनी बूटी उनके काम आयी थी।

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