बनारस में भस्म से मनाई जाती है एक अनोखी होली “ चिता भस्म होली “

Chita Bhsm Holi

वाराणसी जिसे लोग बनारस के नाम से भी जानते हैं, ये एक ऐसी जगह है जो पूरी दुनिया में मशहूर है. विश्वभर से लोग यहां आते हैं और कहते हैं कि यहां आने से उन्हें मोक्ष का अनुभव प्राप्त होता है. इस शहर का हर अनुभव अनोखा है, चाहे वो वहां के सुंदर गंगा घाट हो, वहां का खाना हो या वहां की गलियां, लेकिन इन सब के बावजूद एक और बात बेहद निराली है और वो है वहां की होली, दरअसल वहां मसाने की होली के नाम से होली बेहद ही मशहूर है, इस दिन लोग खास तौर से रंगों के बजाय चिताओं की राख से होली खेलते हैं, ऐसे में आइए जानते हैं क्या है ये अनोखी संस्कृति. खासतौर पर होली के मौके पर हर साल बाबा विश्वनाथ मंदिर और असी घाट पर भारी संख्या में श्रद्धालु एकत्र होते हैं और होली का आनंद लेते हैं. इसे मसान होली कहा जाता है क्योंकि यह उत्सव श्मशान घाटों में मनाया जाता है जो कि मसान के रूप में जाना जाता है.

कैसे शुरू हुई ये परम्परा –

बनारस की होली को ‘चिता भस्म होली’ भी कहा जाता है, एक अनोखी और प्राचीन परंपरा है. यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है. ऐसा माना जाता है कि मृत्यु पर शोक मनाने के बजाय, मृत्यु को जीवन का एक चक्र मानकर मनाया जाना चाहिए. मसान की होली भगवान शिव को समर्पित है, जो मृत्यु के देवता भी हैं. काशी की मसान की होली एक अनोखा और अद्भुत त्योहार है जो हर साल होली के दिन मनाया जाता है. यह त्योहार मृत्यु पर विजय का प्रतीक माना जाता है.

वाराणसी में सदियों से एक परंपरा चली आ रही है जिसे आज भी जीवित रखा गया है, इसके तहत बनारस के मशहूर मणिकर्णिका घाट और हरिश्चंद्र घाट पर जलती हुई चिताओं के भस्म से स्थानीय लोग होली खेलते हैं, इसमें कम उम्र से लेकर बुजुर्गों तक, हर वर्ग के लोग सम्मिलित होते हैं. इस खास दिन से एक दिन पहले रंगभरी एकादशी मनाई जाती है और इसी दिन चिता की राख को एकत्र किया जाता है और एकादशी के ठीक एक दिन बाद लोग उसी राख से होली खेलते हैं, ये होली सबसे ज्यादा मणिकर्णिका घाट पर खेली जाती है.

ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने मृत्यु के देवता यमराज को पराजित करने के बाद मसान में होली खेली थी. इस घटना को यादगार बनाने के लिए, बनारस के लोग हर वर्ष भस्म की होली खेलते है। साथ ही शिव अघोरियों और भूत-प्रेतों के साथ भस्म से होली खेलते हैं। बता दें कि मसान होली हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है. यह त्योहार दो दिनों तक चलता है. पहले दिन लोग चिता भस्म इकट्ठा करते हैं और दूसरे दिन होली खेलते हैं.

जानिए क्यों प्रसिद्ध है भस्म की होली :-

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने भस्म की होली की शुरुआत की थी. ऐसा माना जाता है कि रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शंकर माता पार्वती का गौना कराने के बाद उन्हें काशी लेकर आए थे. तब उन्होंने अपने गणों के साथ रंग-गुलाल के साथ होली खेली थी, लेकिन वे श्मशान में बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष गन्धर्व, किन्नर जीव जंतु आदि के साथ होली नहीं खेल पाए थे. इसलिए रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद भोले शंकर ने श्मशान में रहने वाले भूत-पिशाचों के साथ होली खेली थी. तभी से काशी विश्वनाथ में भस्म की होली खेलने की परंपरा चली आ रही है. चिता की राख से होली खेलने की वजह से ये परंपरा देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध है.