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दिव्य सुधा > व्रत और त्योहार > पापों से मुक्ति पाने के लिए करें पापमोचनी एकादशी व्रत
व्रत और त्योहार

पापों से मुक्ति पाने के लिए करें पापमोचनी एकादशी व्रत

दिव्यसुधा
Last updated: March 24, 2025 10:04 am
दिव्यसुधा
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papmochni ekadashi vart katha
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हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व माना जाता है. धार्मिक मान्यता है कि एकादशी व्रत को करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है. प्रत्येक माह में दो बार एकादशी का व्रत रखा जाता है, एक कृष्ण पक्ष में और दूसरा शुक्ल पक्ष में. एक साल में 24 एकादशी पड़ती है

चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पापमोचनी एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस साल पापमोचनी एकादशी का व्रत 25 मार्च को रखा जाएगा. पापमोचनी एकादशी तिथि 25 मार्च को सुबह 5:05 मिनट पर होगा. इस एकादशी तिथि का समापन 26 मार्च को सुबह 3:45 मिनट पर होगा. ऐसे में उदयातिथि के अनुसार,पापमोचनी एकादशी का व्रत 25 मार्च 2025 को किया जाएगा.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पापमोचनी एकादशी का व्रत विष्णु जी को प्रसन्न करने और अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए रखा जाता है. ऐसा माना जाता है कि पापमोचनी एकादशी व्रत को रखने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है.

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा :

महर्षि लोमश ने कहा: हे नृपति! चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम पापमोचिनी एकादशी है। उसके व्रत के प्रभाव से मनुष्यों के अनेक पाप नष्ट हो जाते हैं। मैं तुम्हें इस व्रत की कथा सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक श्रवण करो।

प्राचीन काल में चैत्ररथ नामक एक वन था। उसमें अप्सराएँ किन्नरों के साथ विहार किया करती थीं। वहाँ सदैव वसन्त का मौसम रहता था, अर्थात उस जगह सदा नाना प्रकार के पुष्प खिले रहते थे। उसी वन में मेधावी नाम के एक शिव भक्त भी तपस्या में लीन रहते थे। एक दिन मञ्जुघोषा नामक एक अप्सरा ने उनको मोहित कर उनकी निकटता का लाभ उठाने की चेष्टा की, इसलिए वह कुछ दूरी पर बैठ वीणा बजाकर मधुर स्वर में गाने लगी। महर्षि मेधावी भी मञ्जुघोषा के मधुर गाने पर तथा उसके सौन्दर्य पर मोहित हो गए, और शिव की तपस्या करना भूल कर काम के वशीभूत होकर उसके साथ रमण करने लगे। काम के वशीभूत होने के कारण मुनि को उस समय दिन-रात का कुछ भी ज्ञान न रहा और काफी समय तक वे रमण करते रहे। उसके बाद मञ्जुघोषा महर्षि मेधावी से बोली: हे ऋषिवर! अब मुझे बहुत समय हो गया है, अतः स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिये। अप्सरा की बात सुनकर ऋषि ने कहा: हे मोहिनी! सन्ध्या को तो आयी हो, प्रातःकाल होने पर चली जाना।

ऋषि के ऐसे वचनों को सुनकर अप्सरा उनके साथ रमण करने लगी। इसी प्रकार दोनों ने साथ-साथ बहुत समय बिताया। मञ्जुघोषा ने एक दिन ऋषि से कहा: हे विप्र! अब आप मुझे स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिये। मुनि ने इस बार भी वही कहा: हे रूपसी! अभी ज्यादा समय व्यतीत नहीं हुआ है, कुछ समय और ठहरो। मुनि की बात सुन अप्सरा ने कहा: हे ऋषिवर! आपकी रात तो बहुत लम्बी है। आप स्वयं ही सोचिये कि मुझे आपके पास आये कितना समय हो गया। अब और ज्यादा समय तक मेरा ठहरना क्या उचित है? अप्सरा की बात सुन मुनि को समय का बोध हुआ और वह गम्भीरतापूर्वक विचार करने लगे। जब उन्हें समय का ज्ञान हुआ कि उन्हें रमण करते सत्तावन वर्ष व्यतीत हो चुके हैं तो उस अप्सरा को वह काल का रूप समझने लगे। इतना अधिक समय भोग-विलास में व्यर्थ चला जाने पर उन्हें बड़ा क्रोध आया। अब वह भयंकर क्रोध में जलते हुए क्रोध से उनके अधर काँपने लगे और इन्द्रियाँ बेकाबू होने लगीं। क्रोध से थरथराते स्वर में मुनि ने उस अप्सरा से कहा: मेरे तप को नष्ट करने वाली दुष्टा! तू महा पापिन और बहुत ही दुराचारिणी है, तुझ पर धिक्कार है। अब तू मेरे श्राप से पिशाचिनी बन जा।

मुनि के क्रोधयुक्त श्राप से वह अप्सरा पिशाचिनी बन गई। यह देख वह व्यथित होकर बोली: हे ऋषिवर! क्रोध त्यागकर कृपा करके बताइये कि इस शाप का निवारण किस प्रकार होगा? विद्वानों ने कहा है, साधुओं की सङ्गत अच्छा फल देने वाली होती है और आपके साथ तो मेरे बहुत वर्ष व्यतीत हुए हैं, अतः अब आप मुझ पर प्रसन्न हो जाइए, अन्यथा लोग कहेंगे कि एक पुण्य आत्मा के साथ रहने पर मञ्जुघोषा को पिशाचिनी बनना पड़ा।

मञ्जुघोषा की बात सुनकर मुनि को अपने क्रोध पर अत्यन्त ग्लानि हुई साथ ही अपनी अपकीर्ति का भय भी हुआ, अतः पिशाचिनी बनी मञ्जुघोषा से मुनि ने कहा: तूने मेरा बड़ा बुरा किया है, किन्तु फिर भी मैं तुझे इस श्राप से मुक्ति का उपाय बताता हूँ। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष को पापमोचिनी एकादशी है। उस एकादशी का उपवास करने से तुम पिशाचिनी देह से मुक्ति हो जाओगी।

ऐसा कहकर मुनि ने उसको व्रत का सब विधान समझा दिया। फिर अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए वे अपने पिता च्यवन ऋषि के पास गये। च्यवन ऋषि ने अपने पुत्र मेधावी से पूछा हे पुत्र! ऐसा क्या किया है तुमने, कि तुम्हारे सभी तप नष्ट हो गए हैं? मेधावी मुनि ने लज्जा से अपना सिर झुकाकर कहा: पिताश्री! मैंने एक अप्सरा से रमण करके बहुत बड़ा पाप किया है। इसी पाप के कारण सम्भवतः मेरा सारा तेज और मेरे तप नष्ट हो गए हैं। कृपा करके आप इस पाप से छूटने का उपाय बतलाइये। ऋषि ने कहा: हे पुत्र! तुम चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पापमोचिनी एकादशी का विधि तथा भक्तिपूर्वक उपवास करो, इससे तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे। अपने पिता च्यवन ऋषि के वचनों को सुनकर मेधावी मुनि ने पापमोचिनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया। उसके प्रभाव से उनके सभी पाप समाप्त हो गए। मञ्जुघोषा अप्सरा भी पापमोचिनी एकादशी का उपवास करने से पिशाचिनी की देह से छूट गई और पुनः अपना सुन्दर रूप धारण कर स्वर्गलोक चली गई।

लोमश मुनि ने कहा: हे राजन! इस पापमोचिनी एकादशी के प्रभाव से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस एकादशी की कथा के श्रवण व पठन से एक हजार गौदान करने का फल प्राप्त होता है। इस उपवास के करने से ब्रह्म हत्या करने वाले, स्वर्ण चुराने वाले, मद्यपान करने वाले, अगम्या गमन करने वाले आदि भयंकर पाप भी नष्ट हो जाते हैं और अन्त में स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।

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