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दिव्य सुधा > अन्य > पद्म पुराण हिंदी में
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पद्म पुराण हिंदी में

दिव्यसुधा
Last updated: April 21, 2025 12:55 pm
दिव्यसुधा
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पद्म पुराण
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भारतीय सनातन धर्म की विशाल और गूढ़ परंपरा में महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित अठारह पुराणों का विशेष स्थान है। सभी अठारह पुराणों की गणना के क्रम में ‘पद्म पुराण’ को द्वितीय स्थान प्राप्त है। श्लोक संख्या की दृष्टि से भी यह द्वितीय स्थान पर है। पहला स्थान स्कन्द पुराण को प्राप्त है। ‘पद्म’ का अर्थ होता है — कमल का पुष्प, जो कि ब्रह्माजी के उत्पत्ति का प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी भगवान नारायण की नाभि से प्रकट कमल से उत्पन्न हुए थे, और उन्होंने वहीं से सृष्टि का ज्ञान प्राप्त कर उसका विस्तार किया। इसलिए इस पुराण को पद्म पुराण की संज्ञा दी गयी है। इस पुराण में भक्तिभाव, जीवन मूल्य, तीर्थ महात्म्य और धार्मिक व्रतों का अनमोल कोश है। इसमें भगवान विष्णु की महिमा का विशद वर्णन है, साथ ही साथ भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण के चरित्रों की मधुर कथा भी समाहित है।

पद्मपुराण के छह खण्ड प्रसिद्ध हैं :

  • सृष्टि खण्ड
  • भूमि खण्ड
  • स्वर्ग खण्ड
  • ब्रह्म खण्ड
  • पाताल खण्ड
  • उत्तर खण्ड

इन खण्डों के क्रम एवं नाम में अंतर भी मिलता है। ‘स्वर्ग खंड’ का नाम ‘आदि खंड’ भी प्रचलित है।नारद पुराण की अनुक्रमणिका में ‘ब्रह्म खंड’ को ‘स्वर्ग खंड’ में ही अंतर्भूत कर दिया गया है और स्वयं पद्मपुराण के एक उल्लेख के अनुसार उपर्युक्त छह खंडों के अतिरिक्त ‘क्रिया खंड’ को भी सातवें खंड के रूप में गिना गया है। हालाँकि इस पाठ से भिन्न पाठ भी उपलब्ध होते हैं जहाँ 6 खंडों का ही उल्लेख है तथा ‘क्रिया खंड’ को ‘सृष्टि खंड’ का ही नामांतर मानकर ‘क्रियायोगसार खंड’ को ‘उत्तर खंड’ में ही समाहित माना गया है।

पद्मपुराण में कथित रूप से 55000 श्लोक माने गये हैं। पद्मपुराण के प्रामाणिक संस्करण तैयार करने की दिशा में ‘आनन्दाश्रम मुद्रणालय, पुणे’ द्वारा 1893-94 ई० में प्रस्तुत संस्करण मील के पत्थर की तरह महत्त्व रखने वाला है। इस संस्करण में अनेक विद्वानों की सहायता से पद्मपुराण के यथासंभव प्रामाणिक रूप को प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है। इसमें श्लोकों की कुल संख्या 48,452 है। 1956-58 ईस्वी में ‘मनसुखराय मोर, 5, क्लाइव राॅ, कोलकाता’ द्वारा प्रस्तुत संस्करण में ‘वेंकटेश्वर प्रेस, बंबई’ से प्रकाशित प्राचीन संस्करण को ही आधार बनाया गया, क्योंकि ‘आनन्दाश्रम’ से प्रकाशित संस्करण में श्लोक संख्या 55000 से बहुत कम थी। हालाँकि वेंकटेश्वर प्रेस के संस्करण के श्लोकों को गिना नहीं गया था और अनुमान से ही उसे 55000 श्लोकों वाला मान लिया गया था। मनसुखराय मोर से प्रकाशित संस्करण ही अब ‘चौखंबा संस्कृत सीरीज ऑफिस, वाराणसी’ से प्रकाशित है। निम्न तालिका से दोनों संस्करणों की अध्याय-संख्या सहित श्लोक संख्या की एकत्र जानकारी प्राप्त की जा सकती है

यह पुराण सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वतंर और वंशानुचरित –इन पाँच महत्त्वपूर्ण लक्षणों से युक्त है। भगवान् विष्णु के स्वरूप और पूजा उपासना का प्रतिपादन करने के कारण इस पुराण को वैष्णव पुराण भी कहा गया है। इस पुराण में विभिन्न पौराणिक आख्यानों और उपाख्यानों का वर्णन किया गया है, जिसके माध्यम से भगवान नारायण से संबंधित भक्तिपूर्ण कथानकों को अन्य पुराणों की अपेक्षा अधिक विस्तृत ढंग से प्रस्तुत किया है। पद्म-पुराण सृष्टि की उत्पत्ति अर्थात् ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना और अनेक प्रकार के अन्य ज्ञानों से परिपूर्ण है तथा अनेक विषयों के गम्भीर रहस्यों का इसमें उद्घाटन किया गया है। इसमें सृष्टि खंड, भूमि खंड और उसके बाद स्वर्ग खण्ड महत्त्वपूर्ण अध्याय है। फिर ब्रह्म खण्ड और उत्तर खण्ड के साथ क्रिया योग सार भी दिया गया है। इसमें अनेक बातें ऐसी हैं जो अन्य पुराणों में भी किसी-न-किसी रूप में मिल जाती हैं। किन्तु पद्म पुराण में विष्णु के महत्त्व के साथ शंकर की अनेक कथाओं को भी लिया गया है। शंकर का विवाह और उसके उपरान्त अन्य ऋषि-मुनियों के कथानक तत्व विवेचन के लिए महत्त्वपूर्ण है।

पद्मपुराण के कुल सात खण्डों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-

1. सृष्टि खण्ड: इस खण्ड में भीष्म ने सृष्टि की उत्पत्ति के विषय में पुलस्त्य से पूछा। पुलस्त्य और भीष्म के संवाद में ब्रह्मा के द्वारा रचित सृष्टि के विषय में बताते हुए शंकर के विवाह आदि की भी चर्चा की।

2. भूमि खण्ड: इस खण्ड में भीष्म और पुलस्त्य के संवाद में कश्यप और अदिति की संतान, परम्परा सृष्टि, सृष्टि के प्रकार तथा अन्य कुछ कथाएं संकलित है।

3. स्वर्ग खण्ड: स्वर्ग खण्ड में स्वर्ग की चर्चा है। मनुष्य के ज्ञान और भारत के तीर्थों का उल्लेख करते हुए तत्वज्ञान की शिक्षा दी गई है

4. ब्रह्म खण्ड: इस खण्ड में पुरुषों के कल्याण का सुलभ उपाय धर्म आदि की विवेचन तथा निषिद्ध तत्वों का उल्लेख किया गया है। पाताल खण्ड में राम के प्रसंग का कथानक आया है। इससे यह पता चलता है कि भक्ति के प्रवाह में विष्णु और राम में कोई भेद नहीं है। उत्तर खण्ड में भक्ति के स्वरूप को समझाते हुए योग और भक्ति की बात की गई है। साकार की उपासना पर बल देते हुए जलंधर के कथानक को विस्तार से लिया गया है।

5. पाताल खण्ड: पाताल लोक का वर्णन है, जो पृथ्वी के नीचे स्थित एक लोक है। इसमें पाताल लोक के विभिन्न पहलुओं, जैसे कि निवासियों, प्राकृतिक विशेषताओं, और पाताल लोक से जुड़ी विभिन्न कहानियों का वर्णन किया गया है.

6. उत्तर खण्ड: मुख्यतः धार्मिक और पौराणिक कथाओं का वर्णन है, जिसमें तीर्थों की महिमा, भगवान विष्णु की महिमा, और विभिन्न देवी-देवताओं की कथाएं शामिल हैं। इसमें भगवत गीता के महत्व पर भी चर्चा की गई है, साथ ही विभिन्न व्रतों और धार्मिक अनुष्ठानों का वर्णन भी है.

7. क्रियायोगसार खण्ड: क्रियायोग सार खण्ड में कृष्ण के जीवन से सम्बन्धित तथा कुछ अन्य संक्षिप्त बातों को लिया गया है। इस प्रकार यह खण्ड सामान्यत: तत्व का विवेचन करता है।

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