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दिव्य सुधा > व्रत और त्योहार > नवरात्रि विशेष… नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की व्रत कथा, मिलेगी हर बाधा और भय से मुक्ति
व्रत और त्योहार

नवरात्रि विशेष… नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की व्रत कथा, मिलेगी हर बाधा और भय से मुक्ति

दिव्यसुधा
Last updated: April 5, 2025 12:24 pm
दिव्यसुधा
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maa kaalratri
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नवरात्रि के सातवें दिन मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा-आराधना की जाती है. शास्त्रों में माता कालरात्रि को शुभंकरी, महायोगेश्वरी और महायोगिनी भी कहा जाता है. माँ कालरात्रि की विधि पूर्वक पूजा अर्चना और व्रत करने वाले भक्तों को मां सभी बुरी शक्तियां और काल से बचाती हैं. मां कालरात्रि का जन्म भूत-प्रेतों और दानवों के विनाश के लिए हुआ था.

मां कालरात्रि की व्रत कथा –
पौराणिक कथा के अनुसार, नमुची नाम के राक्षस को इंद्रदेव ने मार दिया था, जिसका बदला लेने के लिए शुंभ और निशुंभ नाम के दो दुष्ट राक्षसों ने रक्तबीज नाम के एक अन्य राक्षसों के साथ देवताओं पर हमला कर दिया. देवताओं के वार से उनके शरीर से रक्त की जितनी बूंदे गिरी, उनके पराक्रम से अनेक दैत्य उत्पन्न हुए. जिसके बाद सभी राक्षसों ने मिलकर पूरे देवलोक पर कब्जा कर लिया.

देवताओं पर विजय प्राप्त करने के लिए रक्तबीज के साथ महिषासुर के मित्र चंड और मुंड ने उनकी सहायता की थी, जिसका वध मां दुर्गा के द्वारा हुआ था. चंड-मुंड के वध के बाद सभी राक्षस गुस्से से भर गए और सभी राक्षस मिलकर देवताओं पर हमला कर दिया और उनको पराजित करके तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य जमा लिय। राक्षसों के आतंक से डरकर सभी देवता देवी पार्वती के पास जाकर प्रार्थना की.

देवताओं की सहायता करने के माँ पार्वती ने चंडिका का रूप धारण किया। देवी चंडिका शुंभ और निशुंभ द्वारा भेजे गए अधिकांश राक्षसों को मारने में सक्षम थीं. लेकिन चंड व मुंड और रक्तबीज जैसे राक्षस बहुत शक्तिशाली थे और वह उन्हें मारने में असमर्थ थी. तब देवी चंडिका ने अपने शीर्ष से देवी कालरात्रि की उत्पत्ति की. मां कालरात्रि ने चंड व मुंड से युद्ध करके उनका वध कर दिया . मां के इस रूप को चामुंडा भी कहा जाता है.

सभी राक्षसों का वध करने के बाद भी वह रक्तबीज का वध नहीं कर पाई थीं. रक्तबीज को ब्रह्मा जी से एक विशेष वरदान प्राप्त था कि यदि उसके रक्त की एक बूंद भी जमीन पर गिरती है, तो उसके बूंद से उसका एक और रक्तबीज पैदा हो जाएगा. इसलिए, जैसे ही मां कालरात्रि रक्तबीज पर हमला करती रक्तबीज का एक और रूप उत्पन्न हो जाता. मां कालरात्रि ने सभी रक्तबीज पर आक्रमण किया, लेकिन सेना केवल बढ़ती चली गई.

जैसे ही रक्तबीज के शरीर से खून की एक बूंद जमीन पर गिरती थी, उसके समान कद का एक और महान राक्षस प्रकट हो जाता था. यह देख मां कालरात्रि अत्यंत क्रोधित हो उठीं और रक्तबीज के हर हमशक्ल दानव का खून पीने लगीं. मां कालरात्रि ने रक्तबीज के खून को जमीन पर गिरने से रोक दिया और अंततः सभी दानवों का अंत हो गया. बाद में, उन्होंने शुंभ और निशुंभ को भी मार डाला और तीनों लोकों में शांति की स्थापना की.

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