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दिव्य सुधा > व्रत और त्योहार > नवरात्रि विशेष…..नवरात्रि के पांचवे दिन करे स्कंदमाता व्रत कथा
व्रत और त्योहार

नवरात्रि विशेष…..नवरात्रि के पांचवे दिन करे स्कंदमाता व्रत कथा

दिव्यसुधा
Last updated: April 3, 2025 11:24 am
दिव्यसुधा
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skand mata
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नवरात्रि के पांचवे दिन माँ दुर्गा के पांचवे रूप माँ स्कन्द माता की पूजा की जाती है दुर्गा मां के सभी रूपों में स्कंदमाता का रूप बहुत ही ममतामयी और दयालु माना जाता है। इनकी पूजा करने से बुद्धि बढ़ती है और ज्ञान का आशीर्वाद मिलता है। स्कंद कुमार, यानी स्वामी कार्तिकेय की माँ होने के कारण मां के इस रूप को स्कंदमाता कहा जाता है। स्कंद कुमार बाल रूप में मां की गोद में बैठे है। ऐसा माना जाता है कि नि:संतान महिलाएं यदि नवरात्रि के पांचवें दिन सच्चे मन से व्रत रखते हैं और माता की पूजा करते हैं, तो उनकी सूनी गोद जल्द भर जाती है। इसलिए, पांचवे दिन का व्रत और पूजा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है।

स्कंदमाता की पूजा का महत्व –
स्कंदमाता, जिनका रंग शुभ्र है, सिंह और कमल दोनों पर विराजमान होती हैं। उन्हें पद्मासना भी कहते हैं। संतान प्राप्ति के लिए उनकी पूजा बहुत अच्छी मानी जाती है। पूजा के दौरान लाल कपड़े में सुहाग का सामान, लाल फूल, पीले चावल और नारियल बांधकर माता की गोद भरें। ऐसा करने से घर में जल्दी ही किलकारियां गूंजने लगती हैं। स्कंदमाता मोक्ष का रास्ता दिखाती हैं और ज्ञान भी देती हैं। उनका स्वरूप ममता, प्रेम और वात्सल्य का प्रतीक है। वे ज्ञान, विज्ञान और धर्म की देवी हैं। यह दुर्गा कल्याणकारी शक्ति की देवी हैं। देवी अपने सांसारिक रूप में सिंह पर बैठी हैं। उनके दोनों हाथों में कमल, एक हाथ से उन्होंने अपनी गोद में ब्रह्मस्वरूप स्कन्द कुमार को पकड़ा हुआ है। उनकी पूजा में धनुष बाण का अर्पण शुभ माना जाता है। स्कंदमाता को पीले रंग की चीजें पसंद हैं। इसलिए केसर वाली खीर बनाकर उन्हें भोग लगाएं। बुद्धि बढ़ाने के लिए 6 इलायची माता को चढ़ाकर फिर खुद खा लें। स्कंदमाता को कमल का फूल बहुत पसंद है। इसलिए उन्हें कमल के फूल चढ़ाएं।

स्कन्द माता व्रत कथा –
प्राचीन कथा के अनुसार, तारकासुर नाम एक राक्षस ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या कर रहा था। उस कठोर तप से ब्रह्मा जी प्रसन्न होकर उनके प्रगट हुए। ब्रह्मा जी से वरदान मांगते हुए तारकासुर ने स्वंम को अमर करने के लिए कहा। तब ब्रह्मा जी ने उसे समझाया कि इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है उसका मरना तय है। निराश होकर उसने ब्रह्मा जी कहा कि हे प्रभु ऐसा कर दें कि भगवान शिव के पुत्र के हाथों से ही उसकी मृत्यु हो।

तारकासुर की ऐसी धारणा थी कि भगवान शिव कभी विवाह नहीं करेंगे। इसलिए उसकी कभी मृत्यु नहीं होगी। फिर उसने लोगों पर हिंसा करनी शुरू कर दी। तारकासुर के अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवता भगवान शिव जी के पास पहुंचे और तारकासुर के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। तब भगवान शिव ने पार्वती जी से विवाह किया और कार्तिकेय के पिता बनें। बड़े होने के बाद कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया। स्कंदमाता कार्तिकेय की माता हैं।

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