प्राचीन काल में एक महर्षि हुए थे महर्षि अत्रि, जो सप्तर्षियों में से एक थे। उनकी पत्नी थीं माता अनसूया, जिनका नाम ही “अनसूया” यानी “जिसमें ईर्ष्या न हो” इस भाव को दर्शाता है। एक बार ऋषि नारद जी त्रिदेवों की पत्नी लक्ष्मी जी, पार्वती जी और सरस्वती जी के सामने अनुसुइया के पतिव्रत धर्म की बहुत प्रशंसा की, जिसे सुन तीनों देवियों को अनुसुइया से ईर्ष्या होने लगी। नारद जी के जाने के बाद सरस्वती, लक्ष्मी तथा पार्वती अपने-अपने पति यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश से अनुसुइया का पतिव्रत धर्म खंडित कराने की जिद करने लगी। तीनों देवों ने उन्हें बहुत समझाया लेकिन उन्होंने उनकी एक ना सुनी और अन्त में तीनों देवियों ने त्रिदेवों से हठ करके उन्हें सती अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने के लिये आग्रह किया।
त्रिदेव बने बालक
ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश महर्षि अत्रि के आश्रम पर पहुँचे। तीनों देव मुनि वेष में थे। उस समय महर्षि अत्रि अपने आश्रम मे नहीं थे और माता अनुसुइया आश्रम में अकेली थीं। अतिथि के रूप में आये हुए त्रिदेवों यानि तीन साधुओं को देख कर अनुसुइया ने भोजन ग्रहण करने का आग्रह किया, किन्तु त्रिदेवों ने उसे अस्वीकार कर दिया और उन साधुओं ने एक शर्त रखी कि आप हमें निवस्त्र होकर भोजन कराएंगी, तभी हम भोजन करेंगे। यह सुनकर सती अनुसूया सोच में पड़ गयीं। उन्होंने ध्यान लगाकर देखा तो सारा रहस्य उनकी समझ में आ गया। माता अनुसुइया मैं आप लोगों का विवस्त्र होकर आतिथ्य करूँगी। यदि मैं सच्ची पतिव्रता हूँ और मैंने कभी भी काम-भाव से किसी दूसरे पुरुष का चिन्तन नहीं किया हो तो इन तीनों को छः-छः महीने के बच्चे की आयु के शिशु बना दीजिये। ताकि मेरा पतिव्रत धर्म भी खण्ड न हो व अतिथि सेवा न करने का पाप भी न लगे। अनुसुइया की प्रार्थना से वो तीनों देवता छः-छः महीने के बच्चे बन गए तथा अनुसुइया ने तीनों को निःवस्त्र होकर दूध पिलाया और उन्हें पालने में खेलने के लिये डाल दिया।
दत्तात्रेय का जन्म

जब तीनों देव अपने स्थान पर नहीं लौटे, तो देवियों को चिंता होने लगी। अंततः तीनों देवियाँ अपने पतियों का पता लगाने के लिये चित्रकूट निकल गयीं। रस्ते में नारद जी मिले और उन्हें बताया कि माता अनुसुइया ने अपने सतीत्व के द्वारा तीनों देवों को बालक बना दिया है। यह सुनकर तीनों देवियां, अत्रि ऋषि के आश्रम पर पहुँच कर माता अनुसुइया से माफ़ी माँगने लगी। तीनो देवियों की प्रार्थना सुन माता अनुसुइया ने तीनों बालक को वापस उनके वास्तविक रूप में ला दिया। त्रिदेव माता अनुसुइया से बेहद प्रसन्न थे। उन्होंने अत्री ऋषि व अनुसुइया से वरदान मांगने को कहा। तब अनुसुइया ने कहा कि वो निःसंतान है और चाहती है कि तीनों देव पुत्र के रूप में उनके कोख से जन्म ले फिर तीनों देव ने उन्हें इसका वरदान दिया। बाद में दतात्रोय रूप में भगवान विष्णु का , चन्द्रमा के रूप में ब्रह्मा का तथा दुर्वासा के रूप में भगवान शिव का जन्म अनुसुइया के गर्भ से हुआ। इस प्रकार त्रिदेवों के अंश के रूप मे दत्तात्रेय का जन्म हुआ।