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दिव्य सुधा > व्रत और त्योहार > जीवन में शुभता लाती है कामदा एकादशी
व्रत और त्योहार

जीवन में शुभता लाती है कामदा एकादशी

दिव्यसुधा
Last updated: April 8, 2025 4:50 am
दिव्यसुधा
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vishnuji aur laxmi mata
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हिंदू धर्म में कामदा एकादशी का विशेष महत्व होता है। यह चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का संचार होता है। इस व्रत को करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

कामदा एकादशी शुभ मुहूर्त :
पंचांग के अनुसार, 2025 में कामदा एकादशी 8 अप्रैल को मनाई जाएगी। एकादशी तिथि की शुरुआत 7 अप्रैल की रात 08:00 बजे होगी और समापन 8 अप्रैल की रात 09:12 बजे होगा। हिंदू धर्म में उदयातिथि का विशेष महत्व होता है, इसलिए व्रत 8 अप्रैल को रखा जाएगा। इस दौरान विधिवत लक्ष्मी नारायण की पूजा करके दान-दक्षिणा देने के पश्चात व्रत खोलना शुभ माना जाता है।

इस वर्ष कामदा एकादशी के दिन कई शुभ योगों का संयोग बन रहा है:

सर्वार्थ सिद्धि योग – इस योग में पूजा और व्रत करने से व्यक्ति के सभी कार्य सफल होते हैं।

रवि योग – यह योग विशेष रूप से शुभ माना जाता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लेकर आता है।

अश्लेषा नक्षत्र – यह नक्षत्र बहुत ही शुभ माना गया है और व्रत करने वाले को विशेष लाभ प्राप्त होते हैं।

व्रत और पूजा विधि

सुबह स्नान करने के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें।
भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं, उसके बाद विष्णु जी को पीले फूल, तुलसी पत्ता, फल, पंचामृत और प्रसाद अर्पित करें। श्री हरि के मंत्रों का जाप करें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। शाम के समय विष्णु जी की आरती करें और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और दान दें। अगले दिन पारण के समय पूजा कर अन्न-जल ग्रहण करें।

कामदा एकादशी व्रत कथा

प्राचीन समय में भागीपुर नामक एक नगर था. जिस पर पुण्डरीक नाम का राजा राज्य करता था. राजा पुण्डरीक अनेक ऐश्वर्यों से युक्त था. उसके राज्य में अनेक अप्सरायें, गन्धर्व, किन्नर आदि वास करते थे. उसी नगर में ललित एवं ललिता नाम के गायन विद्या में पारन्गत गन्धर्व स्त्री-पुरुष अति सम्पन्न घर में निवास करते हुये विहार किया करते थे. उन दोनों में इतना प्रेम था कि वे अलग हो जाने की कल्पना मात्र से ही व्यथित हो उठते थे. एक बार राजा पुण्डरीक गन्धर्वों सहित सभा में विराजमान थे. वहां गन्धर्वों के साथ ललित भी गायन कर रहा था. उस समय उसकी प्रियतमा ललिता वहाँ उपस्थित नहीं थी.

गायन करते-करते अचानक उसे ललिता का स्मरण हो उठा, जिसके कारण वह अशुद्ध गायन करने लगा. नागराज कर्कोटक ने राजा पुण्डरीक से उसकी शिकायत की. इस पर राजा ने क्रोधवश ललित को श्राप दे दिया – “अरे नीच! तू मेरे सामने गायन करते हुये भी अपनी पत्नी का याद कर रहा है, इससे तू नरभक्षी दैत्य बनकर अपने कर्म का फल भोग.”

राजा पुण्डरीक के श्राप ललित गन्धर्व उसी समय एक भयंकर दैत्य में परिवर्तित हो गया. उसका मुख विकराल हो गया. उसके नेत्र सूर्य, चन्द्र के समान प्रदीप्त होने लगे. मुँह से आग की भयंकर ज्वालायें निकलने लगीं, उसकी नाक पर्वत की कन्दरा के समान विशाल हो गयी तथा गर्दन पहाड़ के समान दिखायी देने लगी. उसकी भुजायें दो-दो योजन लम्बी हो गयीं. इस प्रकार उसका शरीर आठ योजन का हो गया. इस तरह राक्षस बन जाने पर वह अनेक दुःख भोगने लगा. अपने पति ललित का ऐसा हाल होने पर ललिता बहुत हो उठी. वह अपने पति के उद्धार के लिए विचार करने लगी कि मैं कहाँ जाऊँ और क्या करूँ? किस प्रकार अपने पति को इस नरक तुल्य कष्ट से मुक्त कराऊँ?

राक्षस बना ललित वनों में रहते हुये कई प्रकार के पाप करने लगा. उसकी स्त्री ललिता भी उसके पीछे-पीछे जाती और उसकी स्थिति देखकर विलाप करने लगती. एक बार वह अपने पति के पीछे-पीछे चलते हुये विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँच गयी. उस स्थान पर उसने श्रृंगी मुनि का आश्रम देखा. वह शीघ्रता से उस आश्रम में गयी तथा मुनि के सामने पहुँचकर उन्हें दण्डवत् प्रणाम कर प्रार्थना करने लगी, “हे महर्षि! मैं वीरधन्वा नामक गन्धर्व की पुत्री ललिता हूँ, मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से एक भयंकर दैत्य बन गया है. उससे मुझे अपार दुःख हो रहा है. अपने पति के कष्ट के कारण मैं बहुत दुखी हूँ. हे मुनिश्रेष्ठ! कृपा करके आप उसे राक्षस योनि से मुक्ति का कोई उपाय बतायें.”

उसकी कहानी सुनकर मुनि श्रृंगी ने कहा, “हे पुत्री! चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम कामदा एकादशी है. उस व्रत को करने से तुम्हारा पति शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जायेगा। मुनि द्वारा ऐसे वचन सुनकर ललिता ने आने वाले चैत्र शुक्ल एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देती हुई भगवान से प्रार्थना करने लगी हे प्रभु मैंने जो यह व्रत किया है इसका फल मेरे पति को प्राप्त हो जाए जिससे वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाए। एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ। फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करने लगा। उसके पश्चात वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक को चले गए।

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