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दिव्य सुधा > सनातन धर्म > मंदिर > जीण माता मंदिर, यहां के काजल से दूर होते हैं नेत्र रोग
मंदिर

जीण माता मंदिर, यहां के काजल से दूर होते हैं नेत्र रोग

दिव्यसुधा
Last updated: April 3, 2025 12:21 pm
दिव्यसुधा
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जीण माता का जन्म अवतार राजस्थान के चूरू जिले के घांघू गांव के अधिपति एक चौहान वंश के राजा घंघ के घर में हुआ था। जीण माता के बड़े भाई का नाम हर्ष था। माता जीण को शक्ति का अवतार माना गया है और हर्ष को भगवान शिव का अवतार माना गया है। इस मंदिर की कहानी बहुत ही रोचक है, कहते है, ननद भाभी की लड़ाई में जीण माता देवी बनीं और भाई हर्ष भैरव बने. यह मंदिर राजस्थान के प्रमुख मंदिरों में से एक है. एक पहाड़ी पर जीण माता और हर्ष भैरव का एक साथ मंदिर है. यह वही जगह है जहां जीण माता ने तपस्या की थी, मंदिर पुजारियों के अनुसार यहां आज भी जीण माता के द्वारा जलाई अखंड दिव्य जोत जलती है.

विलीन हुई जीण माता
इतिहासकारों के अनुसार, दसवीं सदी में चूरू जिले के घांघू गांव में जन्मे भाई हर्ष और बहन जीण के बीच बहुत प्रेम था, लेकिन भाभी के साजिश के कारण दुखी होकर जीण घर छोड़कर तपस्या के लिए सीकर जिले की अरावली पहाड़ियों पर चली आईं और जीण धाम की काजल शिखर नामक पहाड़ी चोटी पर आकर बैठ गईं. जिसके बाद वह दुखी होकर रोने लगीं. बताया जाता है, जीण इतना रोईं कि उनके आंसुओं से पूरा पहाड़ भीग गया, और आज वही पहाड़ काजल शिखर के नाम से विख्यात है. वही भाई हर्ष बहन जीण को मनाने उसके पीछे-पीछे आये

हर्ष ने जीण को मनाने के लिए हर प्रकार के प्रयास किए, लेकिन वह नहीं लौटीं, इसके बाद भाई हर्ष ने भी बहन के साथ तपस्या करने की ठानी, उसके बाद भाई हर्ष ने भी दूर ऊंची पहाड़ी पर जाकर भगवान शिव की तपस्या शुरू कर दी. ऐसे में दोनों पहाड़ सामने होने के कारण बहिन जीण ने यह सोचा कि अगर भाई सामने दिखेगा तो मेरी तपस्या व देवत्व ध्यान भंग हो जाएगा इसलिए जीण ने शिखर से छलांग लगा देती है और वहां स्थित जयंती देवी की ज्योत में विलीन हो गईं. इस बारे में मंदिर के पुजारी ने बताया, कि भक्त इस अखंड ज्योत से काजल लेने के लिए आते है. यहां का काजल आंखों में लगाने से नेत्र रोग दूर हो जाते हैं.

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