उत्तर प्रदेश की काशी नगरी, जिसे भोलेनाथ की नगरी भी माना जाता है। काशी में भगवान शिव के विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा कौन नहीं जानता, परंतु काशी में ही शिव जी के पुत्र भगवान गणेश अपने विशेष रूप में स्थापित हैं। काशी में स्थापित स्वंयभू गणेश जी मंदिर की यह मूर्ति त्रिनेत्र स्वरूप की है। मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन विघ्नहर्ता गणेश भगवान के इस त्रिनेत्र रूप की उपासना से भक्तों के जीवन की सभी विघ्न और बाधांए दूर होती हैं तथा मनोकामनाओं की पूर्ति होती हैं।
बनारस के लोहटिया नामक स्थान पर भगवान गणेश का स्वयंभू त्रिनेत्र वाली प्रतिमा स्थित है इन्हे बड़ा गणेश भी कहा जाता है मान्यतानुसार जब कशी में गंगा माँ के साथ मन्दाकिनी नदी बहती थी तो उसी समय यह भगवान गणेश प्रतिमा मिली थी। माना जाता है उस दिन माघ महीने की संकष्टी चतुर्थी का दिन था , तब से लेकर आज तक इस दिन यहाँ पर मेले का आयोजन होता है भगवान गणेश का यह मंदिर 40 खम्भों की विशेष शैली में बना हुआ है। जो यहाँ आने वाले सभी श्रद्धालुओं को अचरज में डाल देता है इस मंदिर की प्राचीनता के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है
इस मंदिर की महिमा
लोहटिया में स्थित इस गणेश मंदिर में लोग बहुत दूर-दूर से आते है। इस मंदिर में भगवान अपनी दोनों पत्नी रिद्धि – सिद्धि और दोनों सन्तानो शुभ – लाभ के साथ विराजमान है। लोगो का मानना है कि भगवान गणेश के इस रूप की उपासना करने से सभी रिद्धि – सिद्धि के साथ शुभ लाभ की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है इस मंदिर में भगवान गणेश की बंद कपाट पूजा का विशेष महत्व है जिसे देखने को अनुमति किसी को भी नहीं है इस मंदिर मन्नत मानने वालों और अपने सभी कष्ट दूर करने की मुरादे लेकर आने वाले भक्ति की हमेश लगी रहती है गणेश चतुर्थी के दिन भगवान के दर्शन का विशेष लाभ होता है।