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दिव्य सुधा > अन्य > जब राजा मुचुकुन्द की दृष्टि से भस्म हुआ यवन
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जब राजा मुचुकुन्द की दृष्टि से भस्म हुआ यवन

दिव्यसुधा
Last updated: April 12, 2025 12:36 pm
दिव्यसुधा
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vishnu ji
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त्रेता युग में महाराजा मान्धाता के तीन पुत्र हुए, अमरीष, पुरू और मुचुकुन्द। युद्ध नीति में निपुण होने से देवासुर संग्राम में इंद्र ने महाराज मुचुकुन्द को अपना सेनापति बनाया। युद्ध में विजय मिलने के बाद महाराज मुचुकुन्द ने विश्राम करने की इच्छा प्रकट की। देवताओं ने वरदान दिया कि जो भी तुम्हारे विश्राम में व्यवधान डालेगा, वह तुम्हारी नेत्र ज्योति से वहीं भस्म हो जायेगा।

देवताओं से वरदान प्राप्त करने के बाद महाराज मुचुकुन्द श्यामाष्चल पर्वत की एक गुफा में आकर सो गयें। इधर जब जरासंध ने कृष्ण से बदला लेने के लिए मथुरा पर 18वीं बार चढ़ाई की तो इस बार कालयवन भी युद्ध में जरासंध का सहयोगी बनकर आया। कालयवन एक यवन सम्राट था, जो कि मलेच्छ देश पर शासन करता था, वह भगवान कृष्ण का शत्रु था वह कंस का भी परम मित्र था। भगवान शंकर से कालयवन को युद्ध में अजय का वरदान भी मिला था।

शंकर जी के वरदान को पूरा करने के लिए श्री कृष्ण युद्ध क्षेत्र को छोड़कर भागे। तभी से कृष्ण को रणछोड़ भी कहा जाता है। रण क्षेत्र से श्री कृष्ण को भागता हुआ देखकर कालयवन ने उनका पीछा किया। मथुरा से लगभग सवासौ किलो मीटर दूर आकर श्यामाश्‍चल पर्वत की गुफा में आ गये जहाँ मुचुकुन्द महाराज जी पहले से ही सो रहे थे।

श्री कृष्ण ने अपनी पीताम्बरी मुचुकुन्द जी के ऊपर डाल दी और स्वंम एक चट्टान के पीछे छिप गये। कालयवन भी कृष्ण का पीछा करते करते उसी गुफा मे आ गया। दंभ मे भरे कालयवन ने सो रहे मुचुकुन्द जी को कृष्ण समझकर ललकारा। मुचुकुन्द जी जागे और उनकी नेत्र की ज्वाला से कालयवन वहीं भस्म हो गया।

भगवान कृष्ण ने मुचुकुन्द महाराज जी को विष्णुरूप के दर्शन दिये। मुचुकुन्द जी दर्शनों से अभिभूत होकर बोले – हे भगवान! तापत्रय से अभिभूत होकर सर्वदा इस संसार चक्र में भ्रमण करते हुए मुझे कभी शांति नहीं मिली। देवलोक का बुलावा आया तो वहाँ भी देवताओं को मेरी सहायता की आवश्कता हुई। स्वर्ग लोक में भी शांति प्राप्त नही हुई। अब मै आपका ही अभिलाषी हूँ, श्री कृष्ण के आदेश से महाराज मुचुकुन्द जी ने पाँच कुण्डीय यज्ञ किया।

इस यज्ञ की पूर्णाहुति ऋषि पंचमी के दिन हुई थी। यज्ञ में सभी देवी-दवताओ व तीर्थों को आमंत्रित किया गया। इसी दिन भगवान कृष्ण से आज्ञा लेकर महाराज मुचुकुन्द गंधमादन पर्वत पर तपस्या के लिए प्रस्थान कर गये। वह यज्ञ स्थल आज पवित्र सरोवर के रूप में हमें इस पौराणिक कथा का बखान कर रहा है।

धौलपुर में स्थित तीर्थराज मुचुकुन्द को सभी तीर्थों का भांजा इसलिए कहा जाता है क्योंकि सभी तीर्थों का स्नेह और प्रभाव यहाँ एक साथ जुड़ जाता है. हर साल ऋषि पंचमी व बलदेव छठ के दिन यहाँ लक्खी मेला लगता है। मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। शादियों की मौरछड़ी व कलंगी का विसर्जन भी जहाँ करते है। माना जाता है कि जहाँ स्नान करने से चर्म रोग सम्बन्धी समस्त पीड़ाओं से छुटकारा मिलता है।

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