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दिव्य सुधा > अन्य > क्यों किया भीम ने राक्षसी हिडिम्बा से विवाह
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क्यों किया भीम ने राक्षसी हिडिम्बा से विवाह

दिव्यसुधा
Last updated: April 9, 2025 10:25 am
दिव्यसुधा
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bheem aur hidimba
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हिडिम्बा पांडव कुल की सबसे पहले बनने वधु थी लाक्षा गृह ( लाह से बने घर ) को जब दुर्योधन और मामा शकुनि की योजना के अनुसार जलाया गया तब पांचो पंडाव अपनी माता कुंती उसी घर में रहते थे पांडवों की हत्या करने के लिए ये किया गया था अपने सामर्थ्य और दैविक कृपा से वो लोग वहां से बच निकले और भेष बदलकर रहने लगे। इसी क्रम में वे एक जंगल में पहुँच गए। रात घनेरी और जंगल घना, जमीन पर घास उगे थे जिसके कारण काफी कठिन हो रहा था तब धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाई भीम से सभी को ले चलने का अनुरोध किया , भीम ने अपने शक्ति का परिचय देते हुए, अपनी माता और अपने चारों भाइयों समेत सबको उठा कर चलना प्रारम्भ कर दिया।

जब वो लोग समतल धरती और कोमल घासों से ढकी स्थान पर पहुंच गए, तब भीम ने सबको नीचे उतारा और सबने सोने की व्यवस्था की। पांचो भाई, बारी बारी जग कर, अपने सोते हुए परिवार की रक्षा करते थे। इस बार भीम की बारी थी। वह जंगल कई काली शक्तियों के प्रभाव के कारण मायावी था तथा एक शक्तिशाली एवं मायावी राक्षस हिडिम्ब का राज्य था। जंगल मे आने वाला कोई भी मानव, इस मायावी स्थान से बच कर निकल नही पाता था, अपितु यहाँ के राक्षसों का आहार बन जाता था। यहाँ के राक्षसों की सूंघने की शक्ति बड़ी तेज थी। जंगल में मानव के प्रवेश को तुरंत भांप लेते थे।

हिडिम्बा का भीम पर मोहित होना
जब राक्षस राज हिडिम्ब को इन मनुष्यों के आने का पता चला, तो वह मानव मांस खाने के लिए लालायित हो उठा। वह अपनी बहन हिडिम्बा को उन सभी मनुष्यों को उसके सामने लाने का आदेश दिया। हिडिम्बा पांडवों के पास जा पहुंची और भीम को देखकर उस पर मोहित हो गयी। वह सोचने लगी इतना शक्तिशाली मनुष्य जिसका हृदय इतना कोमल है, कि अपने परिवार की सुरक्षा कर रहा है, उस से अच्छा जीवन साथी कौन हो सकता है। मैं धन्य हूँ यदि वह मेरे पति बन जाये। फिर उसे अपने क्रूर भाई का आज्ञा याद आया। हिडिम्बा ने अपनी मायावी शक्तियों से स्वंम को एक सुन्दर स्त्री के रूप में बदल लिया और भीम के पास पहुंच गयी। पहले जंगल में भटकी हुई युवती के भांति अनेक प्रकार की बातें कहीं, फिर जब भीम ने उसकी रक्षा करने की बात कही, तब वो वहीं पर बैठ गयीं।

आराम कर रहे अर्जुन एवं युधिष्ठिर को देवी हिडिम्बा पर धीरे धीरे शक भी होने लगा था। परंतु, उन्होंने सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सोए रहने का नाटक किया। चुपचाप आस- पास के चीज़ो पर ध्यान दे रहे थे। देवी हिडिम्बा से भी यह सच्चाई छुपी नहीं थी तब उन्होंने भीम को बताया कि, “मुझे मेरे भाई, राक्षस राज हिडिम्ब ने, आप सभी को भ्रमित करके उस तक पहुंचाने के लिए बोला है। ‘परन्तु आपको देखकर मैं आपसे प्रेम करने लगी हूँ और आपसे विवाह करना चाहती हूं‘। मैं आप सभी को यहां से बाहर निकलने का रास्ता बता देती हूँ। मेरा भाई हिडिम्ब बहुत ही पराक्रमी, मायावी और क्रूर है, उसके आने से पहले आप लोग यहाँ से सुरक्षित स्थान पर चलिए।

भीम ने उत्तर देते हुए बोला, ” हे देवी! मैं आपको जानता नही हूँ, लेकिन आपको इतना बता दूँ, की हम पांचों भाई, क्षमता में किसी से कम नही हैं। मैं स्वंम वृकोदर, किसी भी राक्षस को समाप्त करने में सक्षम हूँ। इसलिए मुझे अपने भाइयों की निद्रा भंग करने की कोई आवश्यकता नही है। अब ध्यान से उस मनुष्य को देखिए, वे मेरे बड़े भाई धर्मराज हैं। जिनकी अभी शादी नहीं हुई है। मैं अभी किस प्रकार विवाह कर सकता हूं?

ये बातें हो ही रही थी कि, राक्षस राज हिडिम्ब वहां पहुंच गया, अपनी बहन को ऐसे विभूषित देख, वह क्रोध से भर गया और फिर अपनी बहन समेत सभी पांडवों को मृत्यु दंड देने का निर्णय लिया। अपने भाई के घातक रूप को देख देवी हिडिम्बा भयभीत हो गई, और भीम को अपने परिवार को उठा कर, सुरक्षित स्थान पर ले जाने को कहा। परंतु वे कह भी किस से रहीं थी, महाबली भीम से, जिन्हें राक्षसों और जानवरों से लड़ना पसंद था।

भीम द्वारा राक्षस हिडिम्ब का वध
भीम ने हिडिम्बा से कहा, मैं पीठ दिखा कर भागने वालों में से नही हूँ ना ही ऐसे राक्षस की उदंडता के लिए, अपने परिवार की निद्रा भंग करूँगा। युधिष्ठिर और अर्जुन सतर्क हो सब सुन रहे थे, परंतु सोने का नाटक कर रहे थे। भीम ने क्षण भर में हिडिम्ब को, पकड़ कर घसीटते हुए दूर स्थान पर ले गए। यह देख युधिष्ठिर एवं अर्जुन उठने का स्वांग करने लगे। उन्हें जागता देख, हिडिम्बा ने विनम्रता से पांडवों को सब बताया। बाकी सब हिडिम्बा की बात सुन रहे थे, परंतु युधिष्ठिर एवं अर्जुन का पूरा ध्यान भीम पर था। अर्जुन ने भीम से चिल्ला कर कहा, “भ्राता भीम! इस राक्षस का वध, अतिशीघ्र कीजिए“। यह सुन भीम ने घातक प्रहार से हिडिम्ब की पीठ के टुकड़े–टुकड़े कर दिए।

राक्षसों का राजा बना भीम
हिडिम्ब का वध होते ही भीम के सामने सारे राक्षस घुटने टेक बैठ गए, और उन्हें अपना राजा मान लिया। तभी भीम ने कहा, “मैं तुम्हारा राजा कैसे बन सकता हूँ, क्यों की तुम राक्षस हो और मैं मनुष्य हूँ। तब उनके मंत्री ने कहा, हे राजन! हमारे यहां की परंपरा है जो हमारे राजा को मारता है, वही अगला राजा बनता है। एक शक्तिशाली राजा ही अपनी प्रजा की सुरक्षा कर सकता है, और प्रभु! आप तो राक्षस राज हिडिम्ब से भी अधिक शक्तिशाली हैं। यह सुनकर भीम ने कहा, “परंतु मैं आपका राजा नहीं बन सकता” तब फिर से उनके मंत्री ने हाथ जोड़कर कहा, ऐसा ना कहें, बिना राजा के प्रजा अनाथ हो जाती है। जंगल राज हो जाता है। इन सब बातों को सुन कर, धर्मराज युधिष्ठिर ने विचार करने हेतु समय मांगा।

हिडिम्बा द्वारा शादी के लिए कुंती से निवेदन
तभी वहां देवी हिडिम्बा आकर, भीम से कहती हैं, हे राजन! कृपा करके मेरे प्रेम को स्वीकार कर लीजिये। इस पर भीम ने कहा, “ऐसा कैसे हो सकता है, तुम राक्षस कुल की हो, मैं मनुष्य हूं। मेरे समाज मे क्या तुम्हें वांछित स्थान प्राप्त हो पाएगा। तब देवी हिडिंबा ने कहा, मुझे आपके समाज की स्वीकृति की इच्छा नही है, अपितु आपके स्वीकृति की इच्छा है।

आप मुझसे विवाह करके यहाँ के राजा बन जाईये और एक साल तक मेरे साथ रहे। जब मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो जाएगी, आप यहाँ से जा सकते है हम मायावी जाति के है मेरा पुत्र जन्म के कुछ समय पश्चात् ही युवावस्था को प्राप्त हो जाएगा। तब मैं आपको नहीं रोकूंगी। मेरे पुत्र के रूप में इस कबीले को उसका राजा मिल जाएगा। फिर, रोते हुए माता कुंती के चरणों मे गिर कर कहा “माता! एक स्त्री के प्रेम की पीड़ा तो आप ही समझ सकती हैं। आप मुझे अपनी पुत्र वधु स्वीकार कर लीजिए माता। एक ही वर्ष की तो बात है, मेरा भी कल्याण हो जाएगा और इस कबीले का भी।

भीम और हिडिम्बा की शादी
माता कुंती ने देवी हिडिंबा से कहा, “हे पुत्री! तुम्हारी बातें तो धर्म संगत लग रही हैं, मुझे सोचने का समय दो। फिर, विचार करने के बाद, माता कुंती सहित सभी पांडव इस बात पर सहमत हो गए की, इस प्रकार प्रजा को अनाथ कर के जाना, धर्म संगत नही है। फिर, भीम ने कबीले का राजा होना स्वीकार किया, देवी हिडिंबा से विवाह किया और उनका एक पुत्र हुआ, महाबली घटोत्कच।

मायावी राक्षस होने के कारण, जन्म के कुछ समय बाद ही घटोत्कच युवा हो गए और अपने पिता भीम, अपनी पितामही देवी कुंती सहित अपने सभी काकाओं को दंडवत प्रणाम किया, और उन्हें वचन दिया कि, जब भी पांडवों को उनकी आवश्यकता पड़ेगी, वह केवल स्मरण मात्र से वहां उपस्थित हो जाएंगे। देवी हिडिंबा ने भी अपने वचन अनुसार, अपने पति भीम, उनके भाइयों तथा उनकी माता देवी कुंती को विदा किया।

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