दो बहनों की कहानी
किसी राज्य में एक राजा और एक रानी रहते थे जिनकी चार संतानें थी दो लड़के और दो लड़की। एक लड़की का नाम पूर्णिमा तथा दूसरी लड़की का नाम अमावस्या था। पूर्णिमा घर के कामों में पूरी तरह निपुण थी और वह घर का पूरा काम करती थी। और भगवान की पूजा अर्चना भी किया करती थी साथ ही वह गौ माता की सेवा भी किया करती थी। जबकि उसकी दूसरी बहन अमावस्या ना ही घर का कोई काम करती थी और ना ही भगवान की पूजा अर्चना करती थी। और ना ही गौ माता की सेवा करती थी। पूर्णिमा सर्व गुण संपन्न थी। लेकिन फिर भी राजा और रानी अपने दोनों बेटों तथा पुत्री अमावस्या को ही प्यार किया करते थे। वे पूर्णिमा से प्यार नहीं करते थे उसके साथ भेदभाव करते थे। राजा के चारों पुत्र और पुत्री धीरे-धीरे बड़े हो रहे थे जब वे बड़े हो गए । राजा ने अपने दोनों पुत्रों का विवाह योग्य कन्याओं के साथ करा दिया। इसके बाद रानी ने राजा से कहा कि अब दोनों पुत्री विवाह के योग्य हो गई है और इन दोनों का विवाह भी करा दिया जाये। लेकिन पुत्री अमावस्या का विवाह किसी बड़े खानदान में कराना। और पूर्णिमा का विवाह किसी गरीब परिवार में कराना क्योंकि पूर्णिमा को केवल भगवान की पूजा पाठ करना और गाय की सेवा करना पसंद है । अब रानी ने राजा को दोनों पुत्रियों का रिश्ता तय करने के लिए भेज दिया। राजा ने अपने पड़ोसी राज्य में जाकर वहां के राजा के पुत्र से अमावस्या का रिश्ता तय कर दिया। और वही पास के गांव में जाकर एक गरीब परिवार के लड़के से पुत्री, पूर्णिमा का रिश्ता भी तय कर दिया। ये सारी बात जाकर राजा ने अपनी रानी से बताया, रानी यह सोचने लगी कि अब देखते हैं कि भगवान इसकी मदद कैसे करते हैं। यह बहुत पूजा पाठ करती है और भगवान में मगन रहती है पूर्णिमा का भाई और उसकी भाभी पूर्णिमा से बहुत प्यार करते हैं। क्योंकि पूर्णिमा उनके घर के कामों में उनका साथ देती है, और वहीं उनकी दूसरी बहन अमावस्या, उन पर अपना रोक जमाती है। और घर का कोई काम भी नहीं करती। कुछ समय बीत जाने के बाद दोनों पुत्रियों का विवाह हो जाता है। विदाई के समय राजा और रानी पुत्री अमावस्या को बहुत सारा धन और दौलत देकर विदा करते हैं और पूर्णिमा को कुछ भी नहीं देते। इसके बाद दोनों बहने अपने ससुराल को चली जाती है। कुछ समय बीत जाने के बाद अमावस्या अपने घर पर शिव जी की कथा रखती है जिसमें वह सभी गांव वालों को निमंत्रण देती है पर अपनी बहन पूर्णिमा को नहीं बुलाती। जब गांव की सभी औरतें अमावस्या के यहां जाती है तो यह दृश्य पूर्णिमा अपने घर के दरवाजे के बाहर बैठकर देख रही होती है। तब वहां से गुजर रही औरतें पूर्णिमा से कहती हैं कि तुम्हारी बहन के यहां शिव जी की कथा रखी है क्या तुम नहीं चलोगी। पूर्णिमा कहती है मुझे निमंत्रण नहीं आया है मैं नहीं जा सकती। सभी गांव की औरतों ने पूर्णिमा से कहा बुलाया नहीं तो क्या हुआ भगवान शिव की कथा है। तुम हमारे साथ चलो। गांव की सभी औरतों की बात मानकर पूर्णिमा भी उनके साथ भगवान शिव की कथा में अमावस्या के घर चली जाती है ।
जब अमावस्या की नजर पूर्णिमा पर पड़ती है तो वह कहती है कि तुम यहां कैसे चली आई, अब तुम आ ही गई हो तो चुपचाप बैठी रहना और यह कहते हुए वह पूर्णिमा की गरीबी का भी मजाक उड़ाती है पूर्णिमा की आंखों में आंसू आ जाते है और कहती है कि भगवान मेरा कुसूर ही क्या है ? क्या पूजा पाठ करना गलत है, गौ माता की सेवा करना गलत है। अब वह अपने घर वापस लौट आई। वह अपने पति और बच्चों से कहती है कि वह अपने मायके जा रही है पति ने कहा ठीक है और कुछ समय के बाद पूर्णिमा अपने मायके के लिए रवाना हो गई। चलते-चलते रास्ते में एक चबूतरा आया जिस पर तुलसी का पौधा लगा था उस चबूतरे पर एक बूढ़ी अम्मा बैठी थी वह कोई और नहीं साक्षात तुलसी मां थी। उस बूढ़ी अम्मा ने पूर्णिमा से कहा, बिटिया तुम कौन हो ? और कहां जा रही हो। पूर्णिमा अपना परिचय देती है परिचय देने के बाद बूढ़ी औरत ने पूर्णिमा से कहा, यहां तुलसी का पौधा सूख रहा है इसमें थोड़ा सा पानी डाल दो और इस चबूतरे की साफ सफाई कर दो जिससे मुझे थोड़ी ठंडक मिलेगी। पूर्णिमा ने कहा ठीक है मां ,मैं तुलसी में पानी डाल देती हूं और यहां की साफ सफाई भी कर देती है। अब बूढ़ी औरत कहती है कि बेटी तुम अपने मायके जाओ, लेकिन वापस आते वक्त मुझ से मिलते हुए जाना। अब वह अपने मायके के घर पहुंच जाती है वहां पर पूर्णिमा के भाई और भाभी उसे देखकर बहुत खुश होते हैं और वे पूर्णिमा की बहुत खातिरदारी करते हैं और उससे बहुत सारी बातें करते हैं और कहते हैं कि बच्चों को भी साथ में लेकर आती तो बहुत अच्छा होता। अब कुछ समय बाद पूर्णिमा ने वापस अपने ससुराल जाने को कहती है तो उसकी भाभी उसको एक साड़ी देती है और बच्चों के लिए कपड़े और खाने की कुछ चीजें रखकर देती है और कहती है जाओ और जल्दी वापस आना ! इसके बाद पूर्णिमा वहां से अपने ससुराल के लिए रवाना हो गई।
अब वह उसी की नदी के किनारे पहुंची तो वहां पर उसे वही बूढ़ी अम्मा मिली जो साक्षात गंगा मैया थी उस बूढ़ी अम्मा ने पूर्णिमा को एक थैला दिया और कहा कि इसे तुम अपने घर जाकर ही खोलना अब पूर्णिमा के पास बहुत थैले हो गए थे । उन्हें लेकर पूर्णिमा वहां से रवाना हुई आगे कुछ दूर चलने पर काली मां का मंदिर आया, वहां पर काली मां बूढ़ी मां के रूप में विराजमान थी उसने कहा आ गई बेटी पूर्णिमा, पूर्णिमा ने कहा हां मां जी मैं आ गई। अब काली मां ने उसे एक थैला दिया और कहा तुम यह थैला अपने घर जाकर खोलना अब पूर्णिमा के पास तीन थैले हो गए थे। तीनों थैली लेकर पूर्णिमा आगे बढ़ी, फिर कुछ दूर जाने पर शिव जी का मंदिर आया जहां बूढ़े बाबा के रूप में शिव जी स्वयं विराजमान थे। बूढ़े बाबा ने कहा पूर्णिमा तुम वापस आ गई पूर्णिमा ने कहा हां बाबा मैं वापस आ गई। बूढ़े बाबा ने भी पूर्णिमा को एक थैला दिया और कहा कि यह थैला तुम घर जा कर ही खोलना पूर्णिमा ने कहा ठीक है। अब पूर्णिमा के पास चार थैले हो गए थे। कुछ दूर जाने के बाद , तुलसी मां उसे बूढ़ी औरत के रूप में मिलती है और कहती है पूर्णिमा तुम आ गई पूर्णिमा कहती है हां माजी मैं वापस आ गई। वह बूढ़ी औरत भी उसे एक थैला देती है और कहती है कि यह थैला तू अपने घर जा कर ही खोलना पूर्णिमा कहती है ठीक है माजी। अब पूर्णिमा के पास पांच थैले हो गए थे।
पूर्णिमा अब अपने घर पहुंच गई पूर्णिमा ने थैलों को नीचे रखा और सबसे पहले अपने मायके का थैले खोल कर देखने लगी। उसमें बच्चों के लिए अच्छे-अच्छे कपड़े और खाने-पीने की चीजें थी और उसने कुछ गहने भी थे। पूर्णिमा ने कपड़े अपने बच्चों को दे दिए और खाने-पीने की चीजें भी बच्चों को दे दी बच्चे यह सब पाकर बहुत खुश थे आप पूर्णिमा ने दूसरा फैला खोला जो उसे गंगा मैया ने दिया था उसमें ढेर सारे हीरे जवाहरात सोना चांदी आदि था इसके बाद अब पूर्णिमा ने तीसरा थैला खोला जो उसे काली मां ने दिया था उसमें बहुत सारा सोना सिंगार का सामान भरा हुआ था इसके बाद पूर्णिमा ने चौथा थैला खोला जो उसे भगवान शिव ने दिया हुआ था । उसमें बहुत सारा धन-संपत्ति भरा हुआ था और बहुत सारी खुशियां भरी हुई थी इसके बाद अब पूर्णिमा ने पाँचवाँ थैला खोला जो उसे तुलसी मां ने दिया था उसमें चावल दाल और 7 प्रकार की खाने की चीजों से भरा हुआ था अब पूर्णिमा के घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी उसका घर धन-धान्य से भरा हुआ था और परिपूर्ण था अब पूर्णिमा और उसका परिवार सुख में जीवन व्यतीत करने लगा। अब पूर्णिमा के मन में विचार आया कि क्यों ना शिव जी की कथा कराई जाए और शिव जी की कथा में एक कार्यक्रम रखा पूर्णिमा ने गांव के सभी लोगों को निमंत्रण दिया और घर-घर जाकर सभी लोगों को बुलाया पूर्णिमा अपनी बहन अमावस्या के घर भी गई और अमावस्या को भी शिव जी की कथा के लिए उसने अपने घर पर बुलाया। जब अमावस्या पूर्णिमा के घर शिव जी की कथा में आई तो उसने देखा कि पूर्णिमा के घर में किसी भी चीज की कोई कमी नहीं है इतना सारा धन दौलत देखकर अमावस्या आश्चर्यचकित हो गई उसने पूर्णिमा से कहा कि तुम्हारे घर में इतनी धन और दौलत कहां से आई, पूर्णिमा सभी घटना अपनी बहन अमावस्या को बताती है तो अमावस्या कहती है कि तुम भी मुझे प्रसाद मत दो और मुझे डांट लो।
वह सीधे अपने घर चली गई, और मायके के लिए निकल गई उसे भी रास्ते में चलते-चलते तुलसी मां मिली जो चबूतरे पर बूढ़ी मां के रूप में बैठी हुई थी बूढ़ी मां ने अमावस्या से कहा कि बेटी कौन हो तुम और कहां जा रही है। अमावस्या ने अपना परिचय दिया बूढ़ी मां ने कहा बेटी यह तुलसी का पौधा सूख रहा है इसमें थोड़ा सा पानी डाल दो और इस चबूतरे की साफ सफाई कर दो इस पर अमावस्या ने कहा बुढ़िया तुझे दिखाई नहीं दे रहा कि मैंने इतनी महंगी साड़ी पहन रखी है यह गंदी हो जाएगी, ऐसा कहकर वह आगे चली गई आगे जाने पर उसे भगवान शिव मिले जिसे भी उसने ऐसा ही कहा उसके बाद आगे जाने पर उसे काली मां मिली जिससे भी उसने यही सारी बातें कहीं आगे जाने पर उसे गंगा मिले जिसे भी उसने यही सब कहा और आगे चली गई इसके बाद अमावस्या जब नाव में बैठने लगी तो उसे नाव में फूलों की जगह कांटे भरे थे। जो उसके पैरो में चुभ रहे थे किनारे पर उतर कर वहां अपने मायके चली गई जब वहां उसे उसकी भाभियों ने तथा भाइयों ने देखा तो मन ही मन में कहने लगे कि काम की ना काज की ढाई मन अनाज की ! अब आ ही गई हो तो ठीक है पूर्णिमा तो हमारे कामों में हाथ बटाती थी यह कोई काम करेगी तो है नहीं अब उन्होंने खाना बनाया और खा पीकर सभी सो गए अमावस्या जब सुबह उठी और अपनी भाभियों से कहा । कि मैं अपने ससुराल जा रही हूं उन्होंने कहा कि ठीक है जाओ अमावस्या बोली पूर्णिमा को तो तुमने एक फैला दिया था और मुझे कुछ नहीं दोगे क्या भाई और भाभी ने कहा कि तुम घर जाओ थैले तुम्हारे घर पहुंच जाएगा फिर अमावस्या वहां से निकल गई और नदी के किनारे पर पहुंची वहाँ गंगा मैया बूढ़ी औरत का रूप धारण करके बैठी हुई थी बूढ़ी मां ने कहा आ गई बेटी तो उसने कहा हां मैं आ गई अमावस्या ने कहा। तुमने पूर्णिमा को एक फैला दिया था और मुझे नहीं दोगी क्या बूढ़ी अम्मा ने कहा तुम घर जाओ थैले तुम्हारे घर पहुंच जाएगा इसके बाद आगे जाने पर उसे काली मैया मिली जिसने भी अमावस्या को यही कहा इसके बाद आगे जाने पर उसे शिव भगवान मिले जिन्होंने भी अमावस्या से यही कहा इसके बाद आगे जाने पर उसे तुलसी मां मिली और उसने भी अमावस्या से यही कहा तुम घर जाओ थैले तुम्हारे घर पहुंच जाएगा।
अमावस्या अपने घर पहुंच गई है आंगन में ने देखा तो वहां पर पांच थैले पड़े हुए थे अमावस्या ने मन ही मन सोचा कि अब तो मेरे पास बहुत सारी धन और दौलत आ जाएगी जल्दी-जल्दी उसमें सभी थैले को खोला किसी में मिट्टी थे तो किसी ने पत्थर किसी में कंकर और किसी में कोयला उसे मायके से भी कुछ नहीं मिला था। इन थैले में कुछ भी नहीं था अमावस्या दौड़ती हुई पूर्णिमा के घर गई और कहती है कि तुम्हें तो इतना सब कुछ मिला मुझे तो कुछ नहीं मिला आखिर क्यों तो पूर्णिमा कहती है कि जब मैं अपने मायके जाती हूं तो अपनी भाभियों के साथ उनके कामों में हाथ बताती हूं उनके साथ मिलकर काम करती हूं। लेकिन तुम ऐसा कुछ नहीं करती उनकी इज्जत भी नहीं करती इसीलिए वह तुम्हें भला- क्या देंगे इसके बाद तुमने गंगा मैया को ठुकरा दिया और काली मां को भी ठुकरा दिया और भगवान शिव को भी तुमने ठुकरा दिया इसलिए उन्होंने भी तुम्हें कुछ नहीं दिया अमावस्या कहती है कि बहन तुम मुझे माफ कर दो मैंने तुम पर हमेशा अत्याचार किया है ।
मुझे कुछ नहीं मिला तो कोई बात नहीं मैं भी भगवान की भक्ति करूंगी और सब कुछ प्राप्त कर लूंगी, मुझे इन सब चीजों का रहस्य बताओ तो पूर्णिमा ने कहा कि तुम तीन सूत्र का ज्ञान ले लो जैसे पहले सूत्र में दया मांगना और दूसरे सूत्र में कथा मांगना और तीसरे सूत्र में 108 बार ओम नमः शिवाय का जाप करना इनको अपने हृदय में बसा लेना मैंने भी यह तीन सूत्र अपने जीवन में अपनाएं थे और सच्चे मन से भगवान की भक्ति पूजा पाठ की थी फिर भगवान ने मुझे यह सब कुछ दिया और तुम्हारे पास जो कुछ था वह भी सब खत्म हो गया इसके बाद अमावस्या अपने घर गई और भगवान की पूजा पाठ करने लगी भगवान शिव से उसने माफी मांगी और गौ माता की सेवा भी की और दूसरों की मदद भी करने लगी.